इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी केस में सुनवाई हुई. इस दौरान हाईकोर्ट ने मस्जिद परिसर में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया.
एजेंसी के मुताबिक एएसआई के वकील द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगे जाने के बाद न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने सुनवाई की अगली तारीख 20 मार्च तय की है.
हाईकोर्ट ने लक्ष्मी देवी और तीन की ओर से दायर एक नागरिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई की. इसमें वाराणसी की अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के कोर्ट द्वारा अनिवार्य सर्वेक्षण के दौरान मिले कथित 'शिवलिंग' के कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक निर्धारण की मांग को खारिज कर दिया गया था.
वहीं, 21 नवंबर को ASI के वकील ने हाईकोर्ट से कहा था कि एएसआई अभी भी अपने विशेषज्ञों के साथ इस बात पर विचार कर रहा है कि कथित 'शिवलिंग' की आयु निर्धारित करने के लिए कौन से तरीके अपनाए जा सकते हैं. उन्होंने एएसआई डीजी की राय पेश करने के लिए 3 महीने का समय मांगा था.
याचिकाकर्ताओं ने वाराणसी की एक अदालत के 14 अक्टूबर के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें 'शिवलिंग' की वैज्ञानिक जांच कराने के लिए हिंदू उपासकों की याचिका को खारिज कर दिया गया था. ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने के बीच एक शिला मिली है, जिसे लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि ये शिवलिंग है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे एक फव्वारा बताता है.
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग आखिर होती क्या है और इस परीक्षण से किन चीजों को लेकर नतीजे निकाले जा सकते हैं? इस बारे में BHU के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अशोक सिंह ने खास बातचीत में कहा कि कार्बन डेटिंग केवल उन्हीं चीजों की हो सकती है, जिसमें कभी कार्बन रहा हो. इसका सीधा-सीधा मतलब हुआ कि कोई भी सजीव वस्तु जिसके अंदर कार्बन होता है, जब वह मृत हो जाती है तब उसके बचे हुए अवशेष की गणना करके कार्बन डेटिंग की जाती है. जैसे हड्डी, लकड़ी का कोयला, सीप, घोंघा इन सभी चीजों के मृत हो जाने के बाद ही इनकी कार्बन डेटिंग की जाती है.
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