लिव इन रिलेशनशिप (Live in Relationship) को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि किसी भी बालिग जोड़े को साथ रहने की पूरी स्वतंत्रता है, भले ही वो अलग-अलग जाति या धर्म के हों. उनके मां-बाप और या अन्य किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन मे हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है.
हाई कोर्ट ने कहा कि इनके अधिकारों में हस्तक्षेप करना अनुच्छेद 19 व 21 का उलंघन होगा. ये आदेश न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह ने गौतमबुद्ध नगर की रजिया व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है.
इस मामले में याची का कहना था कि दोनो बालिग हैं. वो अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं और शादी करना चाहते हैं. लेकिन उनके परिवार वाले और मां-बाप इस रिश्ते को पसंद नही करते और वो इससे नाखुश हैं. आशंका है कि उनकी हत्या भी की जा सकती है.
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया
इसको लेकर पुलिस कमिश्नर के यहां 4 अगस्त को शिकायत की गई और सुरक्षा की गुहार भी लगाई लेकिन कुछ नही हुआ. जिसके बाद हाई कोर्ट की शरण मे आना पड़ा. मामले में न कोई कार्यवाई और न कोई एफआईआर ही की गई है.
वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट में बताया कि दोनों अलग-अलग धर्म के हैं और मुस्लिम लॉ में ये अपराध है. इस पर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के हवाले से कहा कि किसी भी बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से एक दूसरे के साथ रहने का अधिकार है. फिर चाहे दोनो की जाति, धर्म अलग ही क्यों न हो. ऐसे जोड़ो को कोई भी परेशान और हिंसा न करे चाहे फिर उसके मां-बाप ही क्यों न हों. पुलिस आरोपियों पर कार्यवाई करे ताकि जोड़ों की शांतिपूर्ण जीवन मे कोई खलल न पड़ने पाए.
लिव इन पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?
इससे पहले, लिव इन रिलेशनशिप के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की भी टिप्पणी आई थी. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि दो बालिग लोग आपसी सहमति से एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं और ये कानून की नजर में अवैध नहीं है. कोर्ट ऐसे कपल को पारंपरिक शादी में रहने वाले जोड़ों की तरह ही देखता है, बशर्ते वो कोर्ट के तय किए गए नियमों के साथ लिव-इन में रह रहे हों.