बॉम्बे हाईकोर्ट ने चेन स्नेचिंग से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालतों को अपना कैलेंडर इस तरह से समायोजित करना होगा कि जिन मामलों में आरोपी अधिक समय से जेल में बंद हों, ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी जाए. बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी मामले की सुनवाई निर्धारित समय के भीतर पूरा न होने को लेकर सेशन जज की ओर से मिले संदेश को लेकर की है.
बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे ने सेशन कोर्ट के एक जज की ओर से दिए गए तर्क पर ये बात कही जो कोर्ट की ओर से निर्धारित की गई समय सीमा के भीतर मामले का निपटारा करने में विफल रहा था. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2019 के उस आदेश पर भी गौर किया जिसमें महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट यानी मकोका के आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी गई थी.
बताया जाता है कि जफर आजम को जुलाई 2016 में चेन स्नेचिंग के आरोप में पकड़ा गया था. जफर पर आरोप है कि वह कल्याण के एक मॉल के बाहर एक महिला से मंगलसूत्र छीनने का प्रयास कर रहा था. आरोप के मुताबिक जफर के अन्य साथी पकड़ने का प्रयास करने वाले लोगों को घायल कर भाग निकले थे. पुलिस के मुताबिक ये आरोपी ऐसे 20 मामलों में संलिप्त थे जिसकी वजह से इनके खिलाफ मकोका के तहत कार्रवाई की गई.
जफर ने 2019 में जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. तब हाईकोर्ट ने ये कहते हुए उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि उसके खिलाफ पर्याप्त सामग्री है और उसके इसी तरह के अपराध करने की संभावना भी है. हालांकि, हाईकोर्ट ने मामले में तेजी लाने और 12 महीने के अंदर ट्रायल पूरा करने के निर्देश ठाणे के एडिशनल सेशन जज को दिए थे.
हाल ही में ठाणे के सेशन जज की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट को एक संदेश भेजा गया था जिसमें ये कहा गया था कि कोरोना महामारी के कारण 1 अगस्त 2021 तक केवल अर्जेंट मैटर्स जैसे जमानत आदि ही लिए गए. 1 अगस्त 2021 को भी SOP बढ़ा दी गई और कोर्ट में सुनवाई 14 फरवरी 2022 से शुरू हो सकी. सेशन जज ने ये भी सफाई दी थी कि विचाराधीन कैदियों के 74 मामले कोर्ट में लंबित हैं. इनमें से 58 मामले मकोका के हैं और पांच का समयबद्ध तरीके से निस्तारण किया जाना है.
बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि सुनवाई में लगने वाले समय और जमानत याचिका खारिज करने को विशेष मामलों के निस्तारण की धीमी गति को उचित ठहराने के लिए बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. जस्टिस डांगरे ने कहा कि जज को ये तथ्य याद रखना चाहिए कि जब हाईकोर्ट ने मामले के जल्द निस्तारण के निर्देश दिए हैं और आरोपी चार साल से कस्टडी में है तो इन कारणों से रिक्वेस्ट को सही नहीं ठहराया जा सकता.
बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने ये सुझाव दिया कि यदि जरूरी हो तो अपील की सुनवाई स्थगित भी की जा सकती है, उसे टाला भी जा सकता है. ये संबंधित जज को चाहिए कि वो अपने शेड्यूल इस तरह तैयार करे जिससे ट्रायल समयबद्ध तरीके से पूरे हों. ये मामला पिछले छह साल से लंबित है. परिस्थितियों को देखते हुए हम एक साल का समय और नहीं दे सकते.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मामले के निस्तारण के लिए छह महीने का समय दिया. न्यायमूर्ति डांगरे ने साथ ही ये भी कहा कि जज इस मामले को समयबद्ध तरीके से लेंगे और अपने कैलेंडर को उसी के मुताबिक समायोजित करेंगे.