CAA कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने असम और त्रिपुरा से जुड़ी याचिकाओं को संग्रह करने का आदेश दे दिया है. तीन हफ्ते के अंदर दोनों असम और त्रिपुरा को कोर्ट में अपना जवाब दायर करना होगा. इस मामले में अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होने वाली है.
सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दो वकीलों को सभी याचिकाओं को संग्रह करने का जिम्मा भी सौंप दिया है. असल में इस मामले में 200 से ज्यादा अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं, ऐसे में समय बचाने के लिए कोर्ट ने पहले ही तय कर लिया था कि याचिकाओं का संग्रह किया जाए. कोर्ट का ये तर्क था कि अगर एक बार में दो से तीन याचिकाओं को लीड मानकर सुनवाई की जाए तो उन मामलों से जुड़े तमाम डाक्यूमेंट्स को पहले ही इकट्ठा किया जा सकता है. वहीं कोर्ट ने नोडल काउंसिल्स को भी निर्देश दिया है कि वे मामले से जुड़े सभी दस्तावेज को जमा कर लें और फिर उन्हें तमाम कांउसिल्स के साथ साझा करें. इस तरह से हर बार मुद्दे से जुड़ी अलग-अलग याचिकाएं आएंगी और उन पर समय रहते सुनवाई होगी.
वैसे इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में जो सुनवाई हुई थी, उसमें केंद्र सरकार ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा था कि CAA के आने से किसी भी भारतीय के मौजूदा अधिकारों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. केंद्र ने दलील दी है कि CAA नागरिकों के लिए एक उदार भाव रखने वाला कानून है. इसके साथ ही कहा है कि CAA कुछ देशों के विशिष्ट समुदायों के लिए एक माफी के तौर पर कुछ छूट देना चाहता है. केंद्र ने जवाब दिया है कि ये कानून कुछ खास पड़ोसी देशों के वर्गीकृत समुदायों पर किए जा रहे उत्पीड़न से जुड़ा है जिस पर अब तक किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया था. सरकारें आई और गईं लेकिन किसी सरकार ने न तो इस समस्या की ओर गंभीरता से ध्यान दिया और ना ही इसके लिए कानूनी उपाय किए.
CAA को 12 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया था. इस एक्ट की मदद से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के वो लोग जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया था. वे सभी भारत की नागरिकता के पात्र होंगे.