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अबू सलेम को 25 साल की सजा पूरी होते ही करना होगा रिहा, सुप्रीम कोर्ट बोला- केंद्र इसके लिए बाध्य

1993 में मुंबई में हुए विस्फोट के मामले में अबू सलेम सजा काट रहा है. 18 सितंबर 2002 को अबु सलेम को गिरफ्तार किया गया था. उसे 12 अक्टूबर 2005 को पुर्तगाल में सशर्त रिहा कर दिया गया था, नवंबर 2005 तक उसे फिर वहीं हिरासत में रखा गया था. नवंबर में ही उसे भारत प्रत्यर्पित कर दिया गया.

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अबु सलेम (File Photo)
अबु सलेम (File Photo)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 2005 में पुर्तगाल से किया गया था प्रत्यर्पित
  • उम्र कैद की सजा के खिलाफ अबू सलेम ने दायर की थी याचिका

मुंबई बम ब्लास्ट के मामले में सजा काट रहे अबू सलेम को 25 साल की सजा पूरी होने पर रिहा करना होगा. सरकार पुर्तगाल के साथ प्रत्यर्पण के समय किए गए वादे को निभाने के लिए बाध्य है. यह बात सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कही. बता दें कि 1993 में मुंबई में हुए विस्फोट के मामले में अबू सलेम सजा काट रहा है. 2005 में उसे पुर्तगाल से भारत प्रत्यर्पित किया गया था.

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न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत केंद्र सरकार राष्ट्रपति को अपनी शक्तियों का प्रयोग करने और सजा के 25 साल पूरे होने पर अबू सलेम को रिहा करने की सलाह देने के लिए बाध्य है'. अदालत ने आगे कहा कि सजा पूरी होने पर 1 महीने के अंदर जरूरी कागजात फॉरवर्ड किए जाएं.

सलेम की अपील का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि सजा में छूट के संबंध में केंद्र सरकार खुद शक्तियों का प्रयोग कर सकती है. बता दें कि 18 सितंबर 2002 को अबु सलेम को गिरफ्तार किया गया था. उसे 12 अक्टूबर 2005 को पुर्तगाल में सशर्त रिहा कर दिया गया था, लेकिन मुंबई के टाडा कोर्ट द्वारा जारी गैर जमानती वारंट के बाद इंटरपोल ने उसेक खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया. नवंबर 2005 तक उसे फिर वहीं हिरासत में रखा गया था. नवंबर में ही उसे भारत प्रत्यर्पित कर दिया गया.

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अबू सलेम की तरफ से उम्र कैद की सजा के खिलाफ याचिका दायर की थी. इस पर फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि अबू सलेम की सजा 25 साल से ज्यादा नहीं बढ़ाई जा सकती, क्योंकि भारत ने उसके प्रत्यर्पण के समय पुर्तगाल के साथ समझौता किया था. पीठ ने कहा कि अबू सलेम की सजा को कम करने के लिए विशेषाधिकार का प्रयोग करने का कोई सवाल नहीं पैदा होता है.

पीठ ने केंद्र की तरफ से हाजिर हुए एएसजी की तरफ दे दाखिल जवाब पर भी सहमति व्यक्त की. एएसजी ने कहा कि भारतीय संविधान की योजना में न्यायिक कार्यकारी शक्तियों को अलग करने से भारतीय अदालतों को प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत कार्यवाही करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. अदालतें कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती हैं, लेकिन अनुपालन में प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत अंतर्राष्ट्रीय दायित्व है.

 

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