केंद्र सरकार ने देशद्रोह कानून में संशोधन की तैयारी में है. इस संबंध में परामर्श प्रक्रिया अग्रिम चरण में है और संसद के मानसून सत्र में एक प्रस्ताव लाया जाएगा. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से इस बारे में जानकारी दी गई है. केंद्र सरकार ने कहा है कि आईपीसी की धारा 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. फिलहाल, SC ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सरकार की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई स्थगित कर दी है.
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जेबी पारदीवाला की बेंच को बताया कि परामर्श प्रक्रिया अभी एडवांस स्टेज में है और हम कानून में संशोधन करने के इच्छुक हैं. आर वेंकटरमणि की दलीलों के बाद बेंच ने कहा- अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि सरकार ने 124ए की फिर से जांच करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और कंसल्टेंशन एडवांस स्टेज में है. इस बयान और AG के अनुरोध के मद्देनजर, हम इस मामले को अगस्त के दूसरे सप्ताह में सुनेंगे.
देशद्रोह कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में दी गई है चुनौती
सुप्रीम कोर्ट कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि कोर्ट को यह जांच करनी है कि क्या केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में 5 जजों की बेंच ने 1962 में इस प्रावधान को सही ठहराया था, क्या इस मामले की सुनवाई 7 न्यायाधीशों द्वारा की जानी चाहिए.
राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, संसद सत्र में कानून में बदलाव लाने को राजी हुई सरकार
मामले में सात जजों की बेंच गठित करने की मांग
इसी दलील को दोहराते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा- इस मामले को सात जजों की बेंच के पास भेजने की जरूरत है. अनुच्छेद 19 को एक नए रूप में फिर से तैयार किया जाना चाहिए और इसलिए इस मामले को सात जजों के पास जाना चाहिए.
पिछले साल SC ने देशद्रोह कानून को स्थगित कर दिया था
बता दें कि पिछले साल मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र द्वारा कॉलोनियल लॉ की फिर से जांच पूरी करने तक देशद्रोह के कानून को स्थगित कर दिया था. कोर्ट ने तब राज्य सरकारों से कहा था कि सरकार की कवायद पूरी होने तक प्रावधान के तहत सभी लंबित कार्यवाही में जांच जारी ना रखें या कठोर कदम ना उठाएं. यानी जो केस लंबित हैं, उन पर यथास्थिति रखी जाए. दरअसल, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एसजी वोमबाटकेरे, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने दंडात्मक प्रावधान के खिलाफ याचिका दायर की है.
Supreme Court: राजद्रोह कानून पर कोर्ट के फैसले के क्या हैं मायने, इन 5 जवाबों में समझिए सारी बात
क्या है देशद्रोह का कानून
आसान भाषा में समझें तो IPC की धारा 124 (A) के अनुसार, देशद्रोह या राजद्रोह एक अपराध है. राजद्रोह के अंतर्गत भारत में सरकार के प्रति मौखिक, लिखित या संकेतों और दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने के प्रयत्न को शामिल किया जाता है. हालांकि, इसके तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किए बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता. राजद्रोह गैरजमानती अपराध है. राजद्रोह के अपराध में तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इस कानून के तहत आरोपी व्यक्ति को सरकारी नौकरी करने से रोका जा सकता है. बता दें कि यह कानून अंग्रेजों के जमाने में लाया गया था जिसे कि आजादी के बाद 75 सालों में भी नहीं बदला गया. 1870 में लागू हुए इस कानून को भारत के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के लिए लाया गया था. 152 साल पुराना ये कानून धीरे-धीरे सत्ता का हथियार बन गया. ऐसे में सरकार पर लगातार आरोप लगे कि अंग्रेजों के जमाने के कानून का आजाद भारत में क्या काम है?
पाकिस्तान की अदालत ने खत्म किया राजद्रोह कानून... जानें-भारत में कहां तक पहुंची बात
10 साल में 11 हजार लोगों पर लगा देशद्रोह
जानकारी के मुताबिक 2010 से 2020 के बीच करीब 11 हजार लोगों के खिलाफ देशद्रोह के 816 केस दर्ज किए गए. इनमें सबसे ज्यादा 405 भारतीयों के खिलाफ नेताओं और सरकारों की आलोचना करने पर राजद्रोह के आरोप लगे हैं. यूपीए-2 सरकार की तुलना में एनडीए सरकार के कार्यकाल में हर साल राजद्रोह के मामलों में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. धारा 124 ए का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आंदोलनों को दबाने में किया गया.