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सुप्रीम कोर्ट का इलेक्शन कमिशन को निर्देश- चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल पेश करें

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. यहां सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि आज के दौर में ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत है जो कि प्रधानमंत्री के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर एक्शन ले सके.

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 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल किए. बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसफ ने कहा कि हमें मौजूदा दौर में ऐसे सीईसी (चीफ इलेक्शन कमिश्नर ऑफ इंडिया) की जरूरत है जो पीएम (प्रधानमंत्री) के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर एक्शन ले सके.

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सुप्रीम कोर्ट ने अब चुनाव आयोग से इलेक्शन कमिश्नर अरुण गोयल के अपाइंटमेंट से जुड़ी फाइल लाने को कहा है. अरुण  गोयल ने हाल ही में चुनाव आयुक्त का पदभार संभाला था. मामले पर आगे सुनवाई गुरुवार को होगी.

बुधवार को जस्टिस जोसफ ने कहा कि मान लीजिए कि किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगे हों और निर्वाचन आयोग यानी सीईसी को कार्रवाई करनी हो, लेकिन आयोग और सीईसी अगर 'यस मैन' यानी कमजोर घुटने और कंधे वाले हों तो क्या ये मुमकिन होगा? यानी वो उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेता है. क्या यह सिस्टम का पूर्ण रूप से ब्रेकडाउन नहीं है?

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़ी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई शुरू हुई थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 70 साल से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई नियम नहीं है, जो कि हैरान करने वाला है.

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केंद्र ने अपनी सफाई में क्या कहा

अब बुधवार को संविधान पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर कानून की आवश्यकता है तो आप संसद को सुझाव दे सकते हैं. लेकिन न्यायालय परमादेश यानी सुप्रीम ऑर्डर जारी नहीं कर सकता. न्यायालय ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो संसद को करना चाहिए. यानी कानून के अभाव में अदालत यह नहीं कह सकती कि यही कानून है, इसलिए आप कानून होने तक इसका पालन करें.

केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देश के संविधान के मुताबिक, राष्ट्रपति सर्वोच्च अधिकारी हैं. वही नियुक्ति करते हैं. उनके पास कानून के अभाव में वैकल्पिक तंत्र भी है. अब नियुक्ति को सिर्फ इसलिए अवैध नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस बाबत कोई कानून नहीं है.

इसके बाद  संविधान पीठ में मौजूद जस्टिस जोसफ ने कहा कि हमें मौजूदा दौर में ऐसे सीईसी की आवश्यकता है जो पीएम के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर एक्शन ले सके.

बेंच ने कहा कि संविधान और जनविश्वास के मुताबिक सीईसी को राजनीतिक प्रभाव से अछूता माना जाता है. उसे स्वायत्त और स्वतंत्र होना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि आयुक्तों के चयन के लिए भी एक स्वतंत्र निकाय होना चाहिए. सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी ही काफी नहीं है. नियुक्ति कमेटियों का कहना है कि बदलाव की सख्त जरूरत है. राजनेता भी ऊपर से चिल्लाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता.

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