भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का शुक्रवार 8 नवंबर को आखिरी वर्किंग डे था. सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से अधिक के कार्यकाल के आखिरी दिन उन्होंने 4:3 बहुमत से एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. यानी उन्होंने अपने आखिरी कामकाज के दिन भी महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और 7 जजों की बेंच में शामिल होकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसख्यंक का दर्जा दिया.
सीजेआई चंद्रचूड़ 10 नवंबर, 2024 को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं. अपने कार्यकाल के दौरान वे 23 संविधान पीठों का हिस्सा थे और इस दौरान उन्होंने 612 फैसले लिखे. वे 10294 पीठों का हिस्सा थे और उन्होंने विभिन्न विषयों पर फैसले सुनाए. दरअसल, मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को 2016 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था और नवंबर 2022 में वे मुख्य न्यायाधीश बने. उनके कार्यकाल के दौरान उनके निर्णयों में गोपनीयता, संघवाद और यहां तक कि मध्यस्थता जैसे विषयों पर भी चर्चा होती रहती है. उन्होंने कई ऐसे बड़े फैसले सुनाए, जो कई बार चर्चा का विषय बने.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा सुनाए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले-
चुनावी बॉन्ड मामला: सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से राजनीतिक फंडिंग के लिए केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ फैसला सुनाया.
निजी संपत्ति: संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सभी निजी संपत्ति को पुनर्वितरण के लिए समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता.
निजता का अधिकार: अगस्त 2017 में 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के एक आंतरिक हिस्से के रूप में संरक्षित है.
अविवाहित महिलाओं के लिए गर्भपात का अधिकार: CJI चंद्रचूड़ ने अविवाहित महिलाओं के अधिकारों का विस्तार करते हुए उन्हें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति दी, जो कि विवाहित महिलाओं के समान है.
दिल्ली सरकार बनाम एलजी: मई 2023 में पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर, सेवाओं के प्रशासन में नौकरशाहों पर विधायिका का नियंत्रण है.
धारा 377 को खत्म करना: पांच जजों की संविधान पीठ ने IPC की धारा 377 को खत्म कर दिया. पहले इस धारा के तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में आता था.
सबरीमाला में महिलाओं पर प्रतिबंध हटाना: सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक नियम को खत्म कर दिया, जिसके तहत 10-50 आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी.
अयोध्या भूमि विवाद: नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि विवादित भूमि को राम मंदिर के निर्माण के लिए गठित किए जाने वाले ट्रस्ट को सौंप दिया जाए और मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए साइट के पास या अयोध्या में किसी उपयुक्त प्रमुख स्थान पर अधिग्रहित भूमि में से पांच एकड़ जमीन दी जाए.
व्यभिचार का अपराधीकरण: सितंबर 2018 में पांच जजों की संविधान पीठ ने माना कि व्यभिचार कोई अपराध नहीं है और इसे भारतीय दंड संहिता से हटा दिया और कहा कि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक है क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है.
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में तकनीकी बदलाव
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही संबंधी कई तकनीकी बदलाव किए, जिसने वकीलों के साथ ही याचिकाकर्ताओं को भी बड़ी सुविधा प्रदान की. इसने पूरी प्रक्रिया को न केवल सहज बना दिया है बल्कि इसे मुकदमेबाज़ी के लिए और भी ज़्यादा अनुकूल बना दिया है. निम्नलिखित तकनीकी बदलाव जस्टिस चंद्रचूड़ के कार्यकाल में हुए-
हाइब्रिड सुनवाई
मुकदमों के अनुकूल सुविधाओं की शुरूआत की गई, जिसमें हाइब्रिड सुनवाई प्रणाली शामिल है, ये प्रमुख उपलब्धियों में से एक है. एक सुनवाई के दौरान CJI ने टिप्पणी की थी, "तकनीक अब पसंद का विषय नहीं है और यह कानून की किताबों की तरह ही ज़रूरी है. तकनीक के बिना अदालतें कैसे काम करेंगी."
मामलों की लिस्टिंग और उल्लेख
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने प्रत्येक कोर्ट के समक्ष प्रतिदिन 10 ट्रांसफर याचिकाओं के साथ-साथ 10 जमानत आवेदनों को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था. अब एक नई प्रणाली तैयार की गई है, और सप्ताह का हर दिन आपराधिक मामलों, MACT मामलों, मध्यस्थता मामलों आदि से संबंधित विशिष्ट श्रेणियों से संबंधित मामलों को संबोधित करने के लिए आरक्षित है.
साथ ही, मामलों का उल्लेख करने की एक नई प्रणाली शुरू की गई, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी ज़रूरी मामलों का न्यायालय के समक्ष व्यवस्थित तरीके से समय पर उल्लेख किया जाए. सभी अधिवक्ताओं को अब उल्लेख के बारे में ईमेल भेजने की आवश्यकता है और अनुरोधों को संबोधित किया जाता है.
कागज रहित कोर्ट
कागज के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से CJI ने अधिवक्ताओं के लिए ऑनलाइन उपस्थिति पोर्टल सहित अधिवक्ताओं के लिए ई-फाइलिंग की शुरुआत की. अधिक पारदर्शिता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने केस डेटा को राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) पर जोड़ा.
नए स्मार्ट कोर्टरूम
सुप्रीम कोर्ट की पहली तीन अदालतें पूरी तरह से भविष्य की अदालतों में बदल गई हैं. सभी नई तकनीक के साथ और अब एक कागज रहित अदालत हैं. न्यायाधीशों के मंच पर अब दस्तावेज़ पढ़ने के लिए न्यायाधीशों के सामने नई स्मार्ट पॉप स्क्रीन हैं. कोर्टरूम में कानून की किताबों की जगह डिजिटल लाइब्रेरी ने ले ली है. निर्बाध वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए, न्यायाधीशों के लिए कोर्टरूम की एक दीवार पर 120 इंच की स्क्रीन लगाई गई है.