चीफ जस्टिस एनवी रमना ने बुधवार को एक ऑनलाइन लेक्चर में न्यायपालिका के रोल को लेकर अहम बातें कहीं. चीफ जस्टिस ने कहा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका, विधायिका और आम जनता के दवाब से हटकर काम करना चाहिए. उन्होंने साथ ही इस बात पर भी ज़ोर दिया कि कोरोना संकट काल में लोगों पर अधिक दबाव बना है, ऐसे में हमें इसपर काम करना चाहिए कि कानून का राज किस तरह कायम रहे.
कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ने कहा कि इस वक्त दुनिया कोरोना जैसी महामारी का सामना कर रही है, ऐसे में हमें एक बार ठहर कर इस बात पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए कि हमने किस हदतक तक लोगों की सुरक्षा और कल्याण के लिए कानून का इस्तेमाल किया. चीफ जस्टिस ने इस बात का अंदेशा भी जताया कि महामारी एक नए और बड़े संकट की शुरुआत कर सकती है.
चीफ जस्टिस ने कहा कि लोगों के पास हर कुछ वर्ष के बाद शासक को बदलने का अधिकार रहता है, लेकिन ये अपने आप में अत्याचार के खिलाफ सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है. लोगों ने अपनी जिम्मेदारी को निभाया है, अब उनकी बारी है जिन्हें किसी पद पर बैठाया गया है. चीफ जस्टिस ने कहा कि चुनाव, राजनीतिक संवाद, विवाद, प्रदर्शन लोकतांत्रिक प्रक्रिया का ही हिस्सा हैं.
‘सोशल मीडिया से प्रभावित ना हो’
चीफ जस्टिस एनवी. रमना ने कहा कि ये महामारी आने वाले दशकों में आने वाली बड़ी परेशानियों की सिर्फ एक शुरुआत हो सकती है. ऐसे में हमें अभी से ही इस बात का आंकलन करना होगा कि हमने क्या ठीक किया और क्या गलत किया.
चीफ जस्टिस ने इस दौरान सोशल मीडिया की भी बात की, उन्होंने कहा कि कार्यपालिका के दबाव को लेकर कई बार बहस होती है, लेकिन इस बीच एक चर्चा ये भी शुरू होनी चाहिए कि सोशल मीडिया के ट्रेंड किस तरह न्यायपालिका को प्रभावित कर सकते हैं.
CJI ने कहा कि न्यायपालिका को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है, फिर चाहे वो प्रत्यक्ष रूप से हो या फिर अप्रत्यक्ष रूप से हो. साथ ही जजों को पब्लिक के ओपिनियन के आधार पर भी कुछ टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, जो आजकल सोशल मीडिया की तरफ से अधिक आ रहा है.
उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं है कि जो बहुमत सोचता हो, वही सत्य हो. चीफ जस्टिस ने अपने लेक्चर में वकीलों से एक बार फिर सिविक प्रोफेशनलिज्म को बेहतर बनाने पर जोर देने की बात कही.