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क्या यूपी में जाति आधारित रैलियों पर लगेगा बैन? इलाहाबाद HC ने केंद्र, राज्य और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

यूपी में जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह से बैन लगाने का मामला फिर से चर्चा में आ गया है. दरअसल इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले में दाखिल जनहित याचिका पर केंद्र, यूपी सरकार और चुनाव आयोग से 4 हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है.

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जुलाई 2013 में दाखिल की गई थी याचिका (फाइल फोटो)
जुलाई 2013 में दाखिल की गई थी याचिका (फाइल फोटो)

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य में जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह से बैठ लगाने की मांग वाली जनहित याचिका पर केंद्र, यूपी सरकार और मुख्य चुनाव आयुक्त को चार हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. बेंच ने याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल किए जाने वाले प्रति-शपथपत्र पर प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी. न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने आठ जुलाई 2013 में मोतीलाल यादव द्वारा दायर पीआईएल पर यह आदेश दिया है. 

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पीठ ने 11 जुलाई, 2013 को जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी. हाई कोर्ट की बेंच ने इससे पहले यूपी चार प्रमुख राजनीतिक पार्टियों– बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस को नोटिस जारी कर जाति आधारित रैलियों के पूर्ण बैन पर जवाब मांगा था. वहीं मुख्य चुनाव आयुक्त से भी पूछा था कि आयोग को जाति आधारित रैलियां करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए?

समाज को बांटती हैं ऐसी रैलियां: कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2013 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि जातिगत रैलियों के आयोजन से समाज बंटता है और इसका बुरा असर पड़ता है.

कोर्ट ने कहा था, “जाति आधारित रैलियों को आयोजित करने की अप्रतिबंधित स्वतंत्रता, जो कि पूरी तरह से नापसंद है और आधुनिक पीढ़ी की समझ से परे है और सार्वजनिक हित के विपरीत भी है, को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. यह कानून के शासन को नकारने और नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित रखने के समान है.’

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खंडपीठ ने कहा था, “राजनीतिकरण के माध्यम से जाति व्यवस्था में राजनीतिक आधार तलाशने के अपने प्रयास में ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को बिगाड़ दिया है. इसके बजाय इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विखंडन हुआ है.’

याचिकाकर्ता ने की हैं तीन मांगें

याचिकाकर्ता वकील मोती लाल यादव ने अपनी याचिका तीन चीजों की मांग की है. पहली कोई राजनीतिक दल जाति आधारित रैली न करे. चुनाव आयोग उन पर बैन लगाए. दूसरी अगर नेता जातीय आधारित रैली करते हैं तो दोषी पाए जाने पर चुनाव आयोग उन्हें चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करे और तीसरी, जो पार्टियां जाति के आधार पर रैलियां करते हुई तो दोषी पाए जाने पर उनकी मान्यता चुनाव आयोग रद्द करे.'

 

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