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साजिश, मनी ट्रेल, हवाला, गवाह... शराब घोटाले में केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ाने वालीं हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणियां

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक्साइज पॉलिसी केस में अरविंद केजरीवाल की याचिका खारिज कर दी है और कहा कि ईडी का एक्शन वैध है. कोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी, कस्टडी समेत अन्य आपत्तियां खारिज कर दीं हैं. हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने 106 पन्नों के फैसले में कहा, गवाहों के बयान से पता चलता है कि केजरीवाल इस केस में कथित तौर पर व्यक्तिगत रूप से शामिल थे और साउथ ग्रुप से रिश्वत लेने की प्रक्रिया में भी वो शामिल रहे थे.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. HC ने दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में केजरीवाल की गिरफ्तारी और न्यायिक हिरासत को जायज ठहराया है. केजरीवाल की ना सिर्फ याचिका खारिज कर दी गई है, बल्कि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ने जो सबूत दिए हैं, वो पुख्ता हैं. कोर्ट ने कहा है कि केजरीवाल पूरी साजिश में लिप्त थे और उन्होंने घूस भी मांगी थी. हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि केजरीवाल की गिरफ्तारी में कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन भी नहीं हुआ है और ना ही उनकी गिरफ्तारी किसी तरह से अवैध है. फिलहाल, हाई कोर्ट की टिप्पणियां बता रही हैं कि आगे भी केजरीवाल का रास्ता आसान नहीं है और मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है. 

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दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था. उसके बाद 10 दिन तक उनसे पूछताछ की गई. बाद में ट्रायल कोर्ट ने 1 अप्रैल को केजरीवाल को 15 दिन की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया था. वे तिहाड़ में 10 दिन से बंद हैं. जबकि उनकी गिरफ्तारी के 21 दिन हो गए हैं. केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी और ज्यूडिशियल कस्टडी को अवैध बताया था और हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. HC ने ईडी और केजरीवाल का पक्ष सुना और 3 अप्रैल को फैसला रिजर्व रख लिया था.

'सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी AAP'

मंगलवार को हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. HC ने कहा, ईडी के पास गिरफ्तारी के पर्याप्त सबूत थे. ट्रायल कोर्ट ने उचित आदेश से उन्हें हिरासत में भेजा. हाईकोर्ट ने ईडी के सबूतों के आधार पर कहा, केजरीवाल एक्साइज पॉलिसी तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में शामिल थे. वो पार्टी के कर्ताधर्ता (संयोजक) भी हैं, ऐसे में उन्होंने रिश्वत भी मांगी थी. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केजरीवाल की सुनवाई जमानत की नहीं, बल्कि गिरफ्तारी और न्यायिक हिरासत की वैधता से जुड़ी है. फिलहाल, AAP ने कहा कि वो इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे.

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'हवाला, गवाह और अपराध की आय का खुलासा...'

HC ने इस केस में AAP को आरोपी बनाने का रास्ता भी साफ कर दिया है. कोर्ट ने कहा, इस न्यायालय के समक्ष मामला दो राजनीतिक दलों से संबंधित नहीं है, बल्कि एक ओर जांच एजेंसी है और दूसरी ओर एक कथित आरोपी (जो मुख्यमंत्री भी हैं) से संबंधित है. कोर्ट ने कहा, खुलासा हुआ कि विजय नायर को केजरीवाल और AAP की ओर से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली. जांच के दौरान अप्रवूर और गवाह के बयानों से प्रथम दृष्टया पता चलता है, जैसा कि ईडी ने आरोप लगाया है कि विजय नायर को केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की ओर से साउथ लिकर लॉबी से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली थी. रिकॉर्ड से पता चलता है कि गोवा चुनाव में AAP ने 45 करोड़ रुपये का इस्तेमाल किया. यह इस अदालत के समक्ष पेश किए गए रिकॉर्ड से सामने आता है यानी प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयान, जिनमें हवाला ऑपरेटरों के साथ-साथ आम आदमी पार्टी द्वारा नियुक्त सर्वे वर्कर, एरिया मैनेजर, असेंबली मैनेजर आदि शामिल हैं. सीडीआर विश्लेषण और आयकर विभाग के छापे में जब्त की गई सामग्री से इसकी पुष्टि होती है. आईटी छापे में 45 करोड़ रुपये की वो रकम जो कथित तौर पर इस मामले में अपराध की कमाई है, उसका इस्तेमाल आम आदमी पार्टी ने गोवा चुनाव 2022 में किया था.

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'केजरीवाल की वजह से जांच में देरी हुई'

मनीष सिसौदिया के आदेश में ईडी ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया है कि ट्रायल 6-8 महीने में पूरा हो जाएगा. हाई कोर्ट ने ईडी के हवाले से कहा, केजरीवाल की वजह से जांच में देरी हुई है. वे जांच में देरी से शामिल हुए, इसलिए बाकी आरोपियों से भी पूछताछ में देरी हुई है. केजरीवाल आम आदमी पार्टी के व्यवसाय के संचालन के प्रभारी और जिम्मेदार हैं और प्रथम दृष्टया पीएमएलए की धारा 70(1) के तहत पार्टी के मामलों के लिए उत्तरदायी हैं.

क्यों केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ेंगी, समझें हाई कोर्ट का फैसला...

AAP भले कह रही है कि वो हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. लेकिन यह चुनौती आसान नहीं है. क्योंकि हाई कोर्ट ने अपने फैसले में वो बातें कही हैं, जो केजरीवाल की दलीलों की हवा निकालती है. गिरफ्तारी से लेकर न्यायिक प्रक्रिया (आरोपी को सरकारी गवाह बनाने और उसके बयान पर आपत्ति) तक सवाल उठाने वाले केजरीवाल को कोर्ट से कड़ा संदेश मिला है. हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि किसी को कोई विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता है. ईडी के पास पर्याप्त सबूत मौजूद हैं. जांच में पूछताछ से मुख्यमंत्री को भी छूट नहीं दी जा सकती है. जज कानून से बंधे हैं, राजनीति से नहीं. केजरीवाल ने गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होने का तर्क भी दिया था. हालांकि, हाई कोर्ट ने साफ किया कि गिरफ्तारी में किसी आदेश का उल्लंघन नहीं हुआ है. यहां तक कि केजरीवाल को ईडी रिमांड पर भेजना भी वैध है. हो सकता है कि केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल जाए, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना होगा.

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पूरी साजिश में शामिल थे केजरीवाल

- कोर्ट ने कहा कि सबूत बताते हैं कि केजरीवाल ने साजिश रची और शराब नीति बनाने में शामिल थे.
- केजरीवाल ने दलील दी थी कि ईडी ने सरकारी गवाह के बयान के आधार पर कार्रवाई की है. कोर्ट ने उनकी आपत्तियों को खारिज कर दिया.
- केजरीवाल ने एक अन्य दलील थी कि गिरफ्तारी की बजाय उनसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पूछताछ की जा सकती थी. कोर्ट ने यह दलील भी खारिज कर दी.
- प्रवर्तन निदेशालय ने सबूत एकत्रित किए हैं. इससे पता चलता है कि उन्होंने दूसरों के साथ मिलकर साजिश रची और आम आदमी पार्टी के संयोजक के साथ-साथ पर्सनल कैपेसिटी से भी इसमें शामिल थे.

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गवाहों के बयान पर सवाल उठाए तो कोर्ट ने लगा दी क्लास

- केजरीवाल देरी से जांच में शामिल हुए हैं, जिसके कारण अन्य आरोपियों से पूछताछ से लेकर गिरफ्तारी तक में देरी हुई है. हाई कोर्ट ने कहा, केजरीवाल के जांच में शामिल नहीं होने के कारण अन्य आरोपी (जो पहले से ही न्यायिक हिरासत में हैं) भी प्रभाव पड़ा. केजरीवाल के जांच में शामिल नहीं होने से एक तरह से अक्टूबर, 2023 से जांच में देरी हुई है.
- हाई कोर्ट ने कहा, यह सब तब हुआ जब ईडी लगातार केजरीवाल को जांच में शामिल करने की कोशिश कर रही थी, क्योंकि उनके नाम का उल्लेख अप्रूवर समेत कई गवाहों के बयानों में सामने आया था. लेकिन केजरीवाल ने करीब छह महीने से किसी ना किसी बहाने से जांच में शामिल होने में देरी की.
- कोर्ट ने साफ किया है कि राजनीतिक दलों को PMLA के दायरे में लाया जा सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 2 (F) के अनुसार, राजनीतिक दल की परिभाषा यह है कि एक राजनीतिक दल का अर्थ व्यक्तियों का संघ या निकाय है.
- साउथ ग्रुप से अपराध की आय के तौर पर रिश्वत ली गई थी और इसे गोवा चुनावों में खर्च किया गया था. इस मामले में अपराध की आय की वसूली बहुत कम मायने रखती है. अप्रूवर के बयानों पर आक्षेप लगाना, न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने के बराबर है.
- अप्रूवर के खिलाफ केजरीवाल की दलील पर हाई कोर्ट ने कहा, माफी देने के तरीके या अप्रूवर का बयान दर्ज करने के तरीके के बारे में संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने के समान है. किसी अप्रूवर का बयान दर्ज करना या माफी देना जांच एजेंसी का क्षेत्र नहीं है. यह एक न्यायिक प्रक्रिया है, जिसमें एक न्यायिक अधिकारी सीआरपीसी की धारा 164 के प्रावधानों का पालन करता है. यदि आप क्षमा की प्रक्रिया पर दोषारोपण करते हैं तो आप जज पर दोषारोपण कर रहे हैं.
- कोर्ट ने कहा, अप्रूवर ने शुरू में तथ्य छुपाए होंगे, लेकिन बाद में उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ. ऐसे में यह उनके बयानों को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का आधार नहीं हो सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी आरोपी को बाद में अपनी गलती का एहसास हो सकता है और वो कानून के अनुसार माफी हासिल करने के बदले में सही तथ्य बताने की पेशकश कर सकता है.
- कोर्ट ने कहा, यह तय करना आरोपी का काम नहीं है कि जांच कैसे की जानी है. यह आरोपी की सुविधा के मुताबिक नहीं हो सकता है. यह अदालत आम आदमी के लिए अलग और लोक सेवक के लिए अलग कानून पर नहीं चलेगी.
- कानून के तहत एक न्यायिक अधिकारी भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए जिम्मेदार होता है और वही यह तय करता है आरोपी को वादा माफ गवाह बनाया जाए या नहीं. बिना इस प्रक्रिया को चुनौती दिए यह कहना कि इस मामले में आरोपी को ईडी की तरफ से माफी दे दी गई, न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करने जैसा है. यह पूरी प्रक्रिया कानून से संचालित होती है न कि किसी सरकार या जांच एजेंसी की ओर से.

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'...तो आप स्वीकार रहे हैं कि योजना का हिस्सा थे?'

-  कोर्ट ने कहा, यदि डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी (केजरीवाल के वकील) का दावा है कि अप्रूवर बनने वाले गद्दार हो गए हैं तो इसका मतलब है कि वो स्वीकार कर रहे हैं कि वे एक ही योजना का हिस्सा थे. इस न्यायालय को आश्चर्य है कि यदि सीनियर वकील (सिंघवी) वर्तमान मामले में अप्रूवर को 'जयचंद' कहते हैं तो यह कहने के समान होगा कि अप्रूवर गद्दार बन गए हैं और आगे यह स्वीकार करना होगा कि वे भी उस कथित योजना के हिस्सा थे. क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय का आरोप है कि अप्रूवर और याचिकाकर्ता (केजरीवाल) इसका हिस्सा थे. हालांकि, यह कोर्ट इस तर्क पर आगे विचार नहीं करेगा.
- कोर्ट का कहना था कि कौन किसे टिकट देता है और कौन किसे चुनावी बॉन्ड के जरिए धन दान करता है, यह इस अदालत के लिए चिंता का विषय नहीं है. इस न्यायालय को कानून और सबूतों को अपने समक्ष उसी रूप में लागू करना आवश्यक है जैसा वो है और इस केस में है. 
- कोर्ट ने कहा, अप्रूवर के बयानों की सच्चाई ट्रायल फेज में तय होगी. उस कथन का साक्ष्यात्मक मूल्य उस (ट्रायल) स्टेज में लोअर कोर्ट में तय होगा. जब याचिकाकर्ता के खिलाफ अभियोजन की शिकायत भी दर्ज नहीं की गई है तो यह अदालत ट्रायल कोर्ट के स्थान पर कदम नहीं रख सकती है और रिट क्षेत्राधिकार में मिनी ट्रायल नहीं कर सकता है.
- कोर्ट ने कहा, गिरफ्तारी से एक दिन पहले ईडी ने केजरीवाल का बयान दर्ज किया था, जिसमें प्रथम दृष्टया संलिप्तता पाए जाने के दावे पुख्ता हुए थे. इस कोर्ट ने केस फाइल को देखा. इसमें कुछ अन्य बयान भी हैं, जो अक्टूबर 2023 से मार्च 2024 की अवधि के बीच दर्ज किए गए हैं, जिसमें एक बयान 20 मार्च 2024 को दर्ज किया गया. इसमें प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता की भूमिका सामने आने का जिक्र किया गया है.

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'केजरीवाल की गिरफ्तारी जरूरी थी'

हाई कोर्ट ने ईडी के हवाले से कहा, याचिकाकर्ता की पर्सनल कैपेसिटी और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक के रूप में उसकी भूमिका के संबंध में पूछताछ जरूरी थी. छह महीने की अवधि में नौ समन की तामील हुई, उसके बाद भी वो जांच में शामिल नहीं हुए. याचिकाकर्ता के आचरण के कारण गिरफ्तारी जरूरी हो गई थी. एजेंसी के पास जांच में शामिल करने के लिए अदालत से रिमांड के जरिए उनकी हिरासत मांगने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था. जांच और उन सवालों के जवाब तलाशना जरूरी थी, जो केजरीवाल की भूमिका को लेकर सामने आए थे. कोर्ट ने यह भी साफ किया कि केजरीवाल की 'सुविधा' के मुताबिक जांच नहीं की जा सकती है. एजेंसी को जब जरूरत होगी, वो अपना काम करेगी. जांच एजेंसियों को किसी व्यक्ति की सुविधा या आदेश के अनुसार जांच करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है. जांच को अपना काम करना होगा. यह केवल इस न्यायालय की राय नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णयों में निर्धारित कानून है.

मुख्यमंत्री को कोई विशेष विशेषाधिकार प्राप्त नहीं

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हाई कोर्ट ने कहा, यह दलील कि याचिकाकर्ता एक राज्य का वर्तमान मुख्यमंत्री है, ऐसे में उसे अलग विशेषाधिकार दिया जाना चाहिए था. यह साफ करना चाहेंगे कि किसी भी जांच एजेंसी को किसी आम आदमी या किसी राज्य के मुख्यमंत्री को बुलाने या पूछताछ करने के लिए अलग व्यवहार या प्रोटोकॉल का पालन नहीं करना होता है.

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समन को कोर्ट में चुनौती क्यों नहीं दी?

कोर्ट ने पूछा- केजरीवाल ने समन को चुनौती क्यों नहीं दी? उन्होंने गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग क्यों नहीं की? याचिकाकर्ता ने न तो अपने पक्ष में किसी अदालत का कोई आदेश प्राप्त किया, न ही उसने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी किए गए समन को चुनौती देने या गिरफ्तारी से कोई सुरक्षा मांगने के लिए किसी अदालत का दरवाजा खटखटाया. केजरीवाल ने खुद को छह महीने की अवधि में जारी किए गए नौ समन को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी. अगर केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय द्वारा भेजे गए समन से व्यथित थे तो उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए था. कोर्ट ने कहा, मामला केंद्र सरकार और केजरीवाल के बीच का नहीं है, ये केजरीवाल और ईडी के बीच का है. यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है. ऐसी कानूनी कार्यवाहियों में न्यायालय के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वो अपना ध्यान केवल मामले की कानूनी खूबियों पर केंद्रित रखे. कोर्ट का मानना ​​है कि न्यायाधीश कानून से बंधे हैं, राजनीति से नहीं. निर्णय कानूनी सिद्धांतों से संचालित होते हैं, न कि राजनीतिक संबद्धता से. राजनीतिक विचारों और समीकरणों को अदालत के समक्ष नहीं लाया जा सकता. क्योंकि वे कानूनी कार्यवाही के लिए प्रासंगिक नहीं हैं.

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