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प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में अब CPM भी पहुंची सुप्रीम कोर्ट, अधिनियम को बताया जरूरी

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम भी 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. CPM (M) इस एक्ट को खत्म करने या इसमे बदलाव करने का कोई भी प्रयास देश के सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक साबित होगा.

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पूजा स्थल अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची CPM
पूजा स्थल अधिनियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची CPM

उपासना स्थल अधिनियम यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के समर्थन में अब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. CPI(M) ने सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट को लेकर लंबित  याचिकाओं के साथ ख़ुद को भी पक्षकार बनाये  जाने की गुहार लगाई है.

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याचिका में CPI(M) का कहना है कि इस एक्ट की भावना को दरकिनार कर अभी देश के विभिन्न 25 मस्जिदों/ दरगाहों पर किए गए दावे को लेकर मुकदमे दायर हो रहे हैं. ऐसे में देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बनाए रखने, सामाजिक सरसता को कायम रखने और मौलिकअधिकारों की रक्षा के लिए इस एक्ट का कायम रहना ज़रूरी है. 

CPM (M) इस एक्ट को खत्म करने या इसमे बदलाव करने का कोई भी प्रयास देश के सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक साबित होगा. 1991 का ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, उसी रूप में रहेगा. अयोध्या के मामले को इस कानून से बाहर रखा गया था.

पूजा स्थल अधिनियम पर फैसले के लिए CJI ने विशेष बेंच का किया गठन, 12 दिसंबर को अगली सुनवाई 

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12 दिसंबर को होगी सुनवाई

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की बेंच 12 दिसंबर को पूजा स्थलों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करेगी, जो 2020 से कोर्ट में लंबित हैं. भारत के मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना ने इस मामले की सुनवाई के लिए विशेष तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया है, जो 12 दिसंबर को दोपहर 3:30 बजे सुनवाई करेगी.

इस मामले में पूजा स्थलों के अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ-साथ ऐसी याचिकाओं पर भी सुनवाई की जाएगी जो इस अधिनियम का समर्थन करती हैं और इसके लिए उचित निर्देश देने की मांग करती हैं.

 

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