बंबई हाई कोर्ट ने हत्या के एक मामले में अहम टिप्पणी की. न्यायमूर्ति भारती डांगे ने शनिवार को एक आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि केवल इसलिए कि मामला हत्या का है, इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी से पुलिस हिरासत में ही पूछताछ की जानी चाहिए.
जस्टिस ने कहा कि भले ही अपराध आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया है लेकिन यह आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ का आधार नहीं बनती और न ही आशंका के चलते उसकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकती इसलिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत उसे जमानत दी जा रही है.
2019 में घाटकोपर थाने में दर्ज कराया गया था केस
मृतक के भाई मनोज दुबे ने 20 मई 2019 को मुंबई के घाटकोपर पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया था. उसका आरोप था कि 2017 में आरोपी संतोष माने ने अपने चार साथियों के साथ मिलकर उसके भाई पर हॉकी स्टिक और तलवार से हमला कर दिया था. उसका दावा है कि आरोपी उसे मारने आए थे, लेकिन गलती से उसके भाई पर हमला कर दिया. मनोज ने बताया कि उसके भाई और माने की पुरानी रंजिश है और वह उसे कभी भी मार सकता है.
पुलिस ने बताया वॉन्टेड, लेकिन वारदात के वक्त कहीं और था आरोपी
सुनवाई में कोर्ट ने पाया कि 2017 में कुछ क्रॉस एफआईआर भी दर्ज की गई थीं, जिनमें एक मामले में माने और दुबे का भाई आरोपी थे. दुबे के अनुसार, उन्होंने और उसके भाई ने इन मामलों में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी, जिससे माने नाराज हो गया और इसके बाद उसके भाई को खत्म करने की साजिश रची दी.
माने के वकील राजीव चव्हाण ने दुबे के मामले में दायर चार्जशीट का जिक्र करते हुए कहा कि चार्जशीट में माने को वॉन्टेड घोषित दिखाया गया था जबकि 2017 की घटना के दौरान माने अकोला में था इसलिए उसे क्लीन चिट दे दी गई.