दिल्ली हाई कोर्ट ने रेप के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों की सगाई हो चुकी थी, तो इसका यह मतलब नहीं है कि आरोपी पीड़ित का यौन उत्पीड़न कर सकता है, उसे पीट सकता है या उसे धमका सकता है. अदालत ने कहा कि आरोपी पर जबरन गर्भपात के गंभीर आरोप हैं और याचिकाकर्ता द्वारा कई मौकों पर शादी का झूठा वादा कर अभियोजन पक्ष (पीड़िता) का यौन उत्पीड़न और बलात्कार किया, इसलिए यह जमानत देने योग्य मामला नहीं है.
पीड़िता का आरोप है कि आरोपी ने जबरन शारीरिक संबंध बनाने और उसे गर्भपात कराने के लिए गोलियां देने के अलावा उसके साथ मारपीट भी की. इसके बाद जुलाई में जब इस मामले में शिकायत दर्ज कराई गई तो आरोपी (याचिकाकर्ता) और उसके परिवार के सदस्यों ने यह शादी तोड़ दी.
वहीं याचिकाकर्ता का तर्क है कि उसके खिलाफ शादी तोड़ने के बाद मामला दर्ज कराया गया है. उसने बताया कि पुलिस को पहले की गई शिकायत में यौन उत्पीड़न या बलात्कार से संबंधित कोई आरोप नहीं लगाए थे. हालांकि इस मामले को बाद में वापस ले लिया गया था.
शादी का झूठा वादा कर आरोपी ने बनाए यौन संबंध
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने याचिकाकर्ता की उस दलील को खारिज कर दिया कि दोनों पक्षों की सगाई हो चुकी थी, इसलिए शादी का कोई झूठा वादा नहीं किया गया था. उन्होंने कहा, "इस तर्क में कोई वजन नहीं है. सगाई हो जाने का मतलब यह नहीं है कि आरोपी पीड़िता का यौन उत्पीड़न कर सकता है, उसे पीट या धमकी दे सकता है. पीड़ित के अनुसार, पहली बार यौन संबंध यह कहकर बनाए गए थे कि उनकी जल्द शादी होने वाली है."
पीड़िता के पास गर्भपात के आरोपों के सबूत नहीं: आरोपी
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जिससे यह पता चले कि जबरन गर्भपात कराया गया. इस पर कोर्ट ने कहा, "एक महिला जो अब तक अविवाहित है, वह अपनी इज्जत को बचाने के लिए ऐसे साक्ष्य नहीं रख सकती है."
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अपराध की गंभीरता, आरोपों की प्रकृति और यह तथ्य कि अब तक आरोप तय नहीं किए गए हैं और मामले में सुनवाई होनी बाकी है, इसे देखते हुए यह मामला जमानत योग्य नहीं लगता, इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर की गई जमानत याचिका खारिज की जाती है.