दिल्ली हाईकोर्ट ने सोते हुए पति पर उबलता लाल मिर्च का पानी डालने के आरोप में महिला को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है. पुलिस ने महिला के खिलाफ गैर इरादतन हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया था. अग्रिम जमानत की मांग करने वाली दलीलों के दौरान आरोपी के वकील ने तर्क दिया था कि वह महिला होने के कारण अग्रिम जमानत की हकदार है.
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने 22 जनवरी को पारित आदेश में कहा कि निष्पक्ष और न्यायपूर्ण न्याय प्रदान करने की प्रणाली की पहचान वर्तमान मामले जैसे मामलों में निर्णय लेते समय जेंडर न्यूट्रल रहना है. यदि कोई महिला ऐसी चोट पहुंचाती है, तो उसके लिए कोई विशेष वर्ग नहीं बनाया जा सकता. जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाले शारीरिक चोटों से जुड़े अपराधों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए, चाहे अपराधी पुरुष हो या महिला, क्योंकि जेंडर की परवाह किए बिना हर व्यक्ति का जीवन और सम्मान समान रूप से कीमती है.
बता दें कि आरोपी महिला ने 1 जनवरी को हुई घटना के बाद दिल्ली हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, जिसमें उसने कथित तौर पर सोते समय अपने पति पर लाल मिर्च पाउडर मिला हुआ उबलता पानी डाला और दरवाजा बंद करके घर से भाग गई. महिला ने अपनी 3 महीने की बेटी को भी पीड़ित पति के साथ कमरे में बंद कर दिया. अभियोजन पक्ष के अनुसार, हमला तब हुआ जब पति को पता चला कि उसकी पत्नी ने अपनी पहली शादी, तलाक और पहली शादी से हुए बच्चे के बारे में छुपाया है. इस जोड़े ने फरवरी 2024 में शादी की थी.
महिला के घरेलू हिंसा का शिकार होने के दावे को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह धारणा कि वैवाहिक संबंधों में बिना किसी अपवाद के केवल महिलाओं को ही शारीरिक या मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ता है, कई मामलों में जीवन की कठोर वास्तविकताओं के विपरीत हो सकती है.
कोर्ट ने कहा, "एक जेंडर का सशक्तिकरण और उसकी सुरक्षा दूसरे जेंडर के प्रति निष्पक्षता की कीमत पर नहीं आ सकता. जिस तरह महिलाओं को क्रूरता और हिंसा से सुरक्षा की आवश्यकता है, उसी तरह पुरुषों को भी कानून के तहत समान सुरक्षा उपायों का अधिकार है. अन्यथा सुझाव देना समानता और मानवीय गरिमा के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा."
इसके अतिरिक्त, पीठ ने टिप्पणी की है कि यह मामला एक व्यापक सामाजिक चुनौती को भी उजागर करता है. अपनी पत्नियों के हाथों हिंसा के शिकार होने वाले पुरुषों को अक्सर अनोखी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसमें सामाजिक अविश्वास और पीड़ित के रूप में देखे जाने से जुड़ा कलंक शामिल है. इस तरह की रूढ़िवादिता इस गलत धारणा को बढ़ावा देती है कि पुरुष घरेलू रिश्तों में हिंसा का शिकार नहीं हो सकते. इसलिए, न्यायालयों को ऐसे मामलों में जेंडर न्यूट्रल दृष्टिकोण की आवश्यकता को पहचानना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाए.