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Explainer: क्या है NSA कानून, जो खरगोन और जहांगीरपुरी हिंसा के आरोपियों पर लगाया गया है, डिटेंशन से सजा तक क्या होगा असर?

What is NSA: दिल्ली के जहांगीरपुरी और मध्य प्रदेश के खरगोन में हुई हिंसा के आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA लगा दिया गया है. जानिए क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और क्या है इसका इतिहास?

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NSA के तहत संदिग्ध व्यक्ति को बिना आरोप के जेल में रखा जा सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
NSA के तहत संदिग्ध व्यक्ति को बिना आरोप के जेल में रखा जा सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • इंदिरा गांधी की सरकार में आया था NSA
  • संदिग्ध को 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है

What is NSA: दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के दिन हुई हिंसा के मामले में बड़ा एक्शन हुआ है. हिंसा के पांच आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगा दिया गया है. जिन आरोपियों पर NSA लगा है, उनमें अंसार, सलीम चिकना, इमाम शेख, दिलशाद और आहिद है.

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इससे पहले रामनवमी के दिन मध्य प्रदेश के खरगोन में हुई हिंसा के मामले में भी दो आरोपियों पर NSA लगा दिया गया. खरगोन हिंसा के मामले में आरोपी मोहसिन और नवाज के खिलाफ NSA लगाया गया है. 

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बेहद सख्त कानून माना जाता है. इस कानून के तहत पुलिस संदिग्ध व्यक्ति को 12 महीनों तक हिरासत में रख सकती है. हिरासत में रखने के लिए बस बताना होता है कि इस व्यक्ति को जेल में रखा गया है. क्या है ये राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और इसे किस तरह अपराधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है, जानते हैं...

क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून?

- नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका), एक ऐसा कानून है जिसके तहत किसी खास खतरे के चलते व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है. अगर प्रशासन को लगता है कि किसी शख्स की वजह से देश की सुरक्षा और सद्भाव को खतरा हो सकता है, तो ऐसा होने से पहले ही उस शख्स को रासुका के तहत हिरासत में ले लिया जाता है.

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- इस कानून को 1980 में देश की सुरक्षा के लिए सरकार को ज्यादा अधिकार देने के मकसद से बनाया गया था. इस कानून का इस्तेमाल पुलिस कमिश्नर, डीएम या राज्य सरकार कर सकती है. अगर सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति बिना किसी मतलब के देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तार किए जाने की जरूरत है तो उसे भी गिरफ्तार कर सकती है. कुल मिलाकर ये कानून किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में या गिरफ्तार करने का अधिकार देता है.

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क्या है इस कानून का इतिहास?

- ये एक प्रिवेंटिव कानून है, जिसका मतलब होता है कि किसी घटना के होने से पहले ही संदिग्ध को गिरफ्तार किया जा सकता है. इस कानून का इतिहास ब्रिटिश शासन से जुड़ा हुआ है. 

- 1881 में ब्रिटिशर्स ने बंगाल रेगुलेशन थर्ड नाम का कानून बनाया था. इसमें घटना होने से पहले ही गिरफ्तारी की व्यवस्था थी. फिर 1919 में रॉलेट एक्ट लाया गया. इसमें ट्रायल की व्यवस्था तक नहीं थी. यानी, जिसे हिरासत में लिया गया, वो अदालत भी नहीं जा सकता था. इसी कानून के विरोध के चलते ही जलियांवाला बाग कांड हुआ था.

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- भारत जब आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार में 1950 में प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट आया. 31 दिसंबर 1969 को इसकी अवधि खत्म हो गई. 1971 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा आया. 1975 में इमरजेंसी के दौरान राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया.

- 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तब इस मीसा को खत्म कर दिया गया. 1980 में फिर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. तब उनकी सरकार में 23 सितंबर 1980 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून संसद से पास हुआ. 27 दिसंबर 1980 को ये कानून बन गया.

क्या हैं इस कानून में प्रावधान?

- इस कानून के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को 3 महीने तक बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है. जरूरत पड़ने पर इसकी अवधि 3-3 महीने के लिए बढ़ाई जा सकती है.

- इस कानून के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है. हिरासत में रखने के लिए संदिग्ध पर आरोप तय करने की जरूरत भी नहीं होती.

- गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार को बताना पड़ता है कि इस व्यक्ति को जेल में रखा गया है और उसे किस आधार पर गिरफ्तार किया गया है.

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- हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिर्फ हाईकोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड के सामने अपील कर सकता है. उसे वकील भी नहीं मिलता. जब मामला कोर्ट में जाता है तब सरकारी वकील कोर्ट को मामले की जानकारी देते हैं.

क्या होती है सजा?

NSA के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 3 महीने तक जेल में रखा जा सकता है. इसके बाद जरूरत पड़ने पर इसे 3-3 महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है, लेकिन किसी भी हालत में 12 महीने से ज्यादा जेल में नहीं रखा जा सकता.

 

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