प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से की जाने वाली गिरफ्तारियों पर सवाल उठ रहे थे. प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी समेत ईडी को मिले कई अधिकारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सौ से अधिक याचिकाएं दाखिल हुई थीं. याचिकाकर्ताओं ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती के अधिकार की वैधानिकता पर सवाल उठाए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के अधिकारों को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए में साल 2018 के संशोधन को भी सही ठहराया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंस बिल के जरिये पीएमएलए में किए गए बदलाव से संबंधित मामले को सात जजों की बेंच के सामने भेज दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ईडी के अधिकार पर सुप्रीम मुहर की तरह देखा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसके मायने भी निकाले जाने लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को एक तरह से सरकार के लिए बड़ी राहत और विपक्ष के लिए झटका बताया जा रहा है. माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पी चिदंबरम समेत कई नेताओं के खिलाफ ईडी की जांच चल रही है. डॉक्टर फारुक अब्दुल्ला, भूपिंदर सिंह हुड्डा, नवाब मलिक और अभिषेक बनर्जी, पार्थ चटर्जी समेत कई नेता ईडी की जांच के दायरे में हैं. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इन नेताओं के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि ईडी की गिरफ्तारी से जुड़ी प्रक्रिया मनमानी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जांच के दौरान पुलिस अधिकारियों को छोड़कर ईडी, एसएफआईओ, डीआरई के अधिकारियों के सामने दर्ज बयान भी वैध सबूत हैं. कोर्ट ने ये भी साफ किया कि आरोपी को शिकायत की कॉपी दी जाए, ये जरूरी नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि किस आरोप के तहत गिरफ्तारी की जा रही है, आरोपी को ये बता दिया जाना भी काफी है. कोर्ट ने पीएमएलए के तहत बेल की कंडीशन पर सवाल उठाने वाली दलीलें भी खारिज कर दीं. सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए को अवैधानिक बताने वाली दलीलें भी खारिज कर दीं. सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए एक्ट के तहत ईडी को दिए गए अधिकारों को सही बताया और याचिका खारिज कर दी.
क्या था चुनौती देने वाली याचिकाओं का आधार
पीएमएलए एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब सौ याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में पीएमएलए एक्ट में 2018 के संशोधन को चुनौती दी गई थी और गिरफ्तारी, जमानत देने, संपत्ति जब्त करने के अधिकार पर भी सवाल उठाए गए थे. याचिका में ईडी को मिले इन अधिकारों को सीआरपीसी के दायरे से बाहर बताते हुए पीएमएलए एक्ट को असंवैधानिक बताया गया था.