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इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम फैसले के एक महीने बाद भी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इसका डेटा ठीक ढंग से जारी नहीं कर पाया है. कोर्ट को एसबीआई को फिर फटकार लगानी पड़ी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा की क्या बैंक को कोर्ट का फैसला समझ नहीं आया? तो आइए जानते हैं कि आखिर सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा किस फॉर्मेट में चाहता है और क्या-क्या डिमांड रखी है?
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सोमवार की सुनवाई में बैंक और कंपनियों की तरफ से पेश वकीलों को निर्देश दिया कि एसबीआई को 21 मार्च को शाम 5 बजे से पहले बॉन्ड से जुड़े तमाम डेटा जारी करने के आदेश दिए. फैसले के मुताबिक, बैंक बॉन्ड का डेटा चुनाव आयोग को सौंपेगा, जो आयोग की साइट पर पब्लिश किया जाएगा, ताकि उन्हें आसानी से एक्सेस किया जा सके.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने क्या डेटा जारी किया?
सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी के फैसले के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने देरी से ही डेटा जारी तो किया है लेकिन इससे सुप्रीम कोर्ट 'संतुष्ट' नहीं है. मसलन, बैंक ने दो पार्ट में डेटा जारी किया, जिसे चुनाव आयोग की साइट पर देखा जा सकता है.
डेटा के पहले पार्ट में बॉन्ड खरीद की तारीख, खरीदने वाले व्यक्ति या कंपनी का नाम और उसकी कीमत बताई गई है. दूसरे पार्ट में बॉन्ड्स को भुनाने की तारीख, पार्टी के नाम और उसकी कीमत दी गई है.
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डिस्क्लोजर की Zip फाइल के रूप में एक तीसरी कॉपी भी जारी की गई है, जिसमें बॉन्ड्स की कीमत, देने वाले-भुनाने वाले का नाम और तारीख के साथ डेटा शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, स्टेट बैंक को एक फाइनल डेटा जारी करना होगा, जिसमें बैंक को उस यूनिक कोड का खुलासा करना होगा, जिससे ये पता चलेगा की आखिर कब, किसने, किस पार्टी को, कितने चंदा दिया.
मसलन, जारी डेटा को संशोधित कर एक कॉलम जोड़कर बैंक यूनिक कोड के साथ दो पार्ट में डेटा जारी कर सकता है, जिसे आम लोगों के लिए समझना आसान होगा.
सुप्रीम कोर्ट किस फॉर्मेट में चाहता है डेटा?
आम मतदाता डेटा को आसानी से समझ पाएं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि स्टेट बैंक यूनिक कोड के साथ सभी डेटा जारी करे. मसलन, बैंक अगर यूनिक कोड के साथ डेटा जारी करता है, तो बैंक को दो पार्ट में डेटा जारी करना चाहिए.
क्या है यूनिक कोड?
इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू से ही विवादों में रहा था. इसकी ट्रांसपेरेंसी पर चौतरफा सवालों के बाद दिसंबर 2021 में लोकसभा में वित्त मंत्रालय ने कुबूल किया था, "चुनावी बांड पर छिपे हुए अल्फान्यूमेरिक नंबर किसी भी जाली इलेक्टोरल बॉन्ड की प्रिंटिंग या उसके एनकैशमेंट को रोकने के लिए एक आंतरिक सुरक्षा देता है."
मसलन, तमाम बांड्स पर अलग-अलग अल्फान्यूमेरिक नंबर दर्ज होते हैं, जिसे यूनिक कोड कहा जा रहा है.
कोड बॉन्ड्स के राइट-टॉप कॉर्नर पर दर्ज होते हैं. इस कोड को फॉरेंसिक जांच या फिर अल्ट्रावायलेट-लाइट की मदद से आसानी से देखा जा सकता है. अब स्टेट बैंक को इसी नंबर के साथ डेटा जारी करना होगा, जिससे आप बॉन्ड खरीदने वाले और इसको भुनाने वाले के साथ मिलान कर सकेंगे.
क्यों हुआ इलेक्टोरल बॉन्ड्स का विरोध?
सबसे पहले यह स्पष्ट कर दें कि, इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने का अधिकार सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास है, जो कि वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है. मसलन, इलेक्टोरल बॉन्ड अब तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध करार दे दिया गया है लेकिन इसकी ट्रांसपेरेंसी शुरू से ही सवालों के घेरे में रही थी.
केंद्र सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में दावा किया गया था की बॉन्ड स्कीम ट्रांसपेरेंट है और इसके जरिए पॉलिटिकल फंडिंग करने वालों की जानकारी गुप्त रखी जाती है. इलेक्टोरल बॉन्ड के विरोधी मानते थे कि फंडिंग करने वालों की सभी जानकारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास एक्सेसिबल है, जो केंद्र सरकार में वित्त मंत्रालय के तहत काम करता है.