चुनावी बॉन्ड्स योजना पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कई कानूनी सवाल पूछे. उधर याचिकाकर्ता ने कहा कि बॉन्ड्स की जानकारी सार्वजनिक न करना जनता के सूचना पाने के अधिकार का हनन है. इलेक्टोरल बॉन्ड्स नीति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने कानूनी बिंदु तय किए. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई कर रही है. इन याचिकाओं में चुनावी बॉन्ड्स योजना को अंसवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है.
ये मामला हमारे लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा है. क्योंकि राजनीतिक दलों को दिया जाने वाला चंदा दोनों सिरों पर आय कर मुक्त है. देने वाले को भी आयकर में छूट और लेने वाली राजनीतिक पार्टी को भी आयकर से राहत मिलती है. कम्पनी ये नहीं बताती कि उन्होंने किस पार्टी को चंदा दिया. पहले इसका प्रावधान था.
आयकर नियमावली में जरूरत है इस प्रावधान की कि हरेक राजनीतिक दल अपने पास मिले चंदे का अलग से हिसाब किताब रखे और अपने आयकर रिटर्न में उसे प्रदर्शित करे कि उसे किसने, कब और कितना चंदा किस जरिए दिया. लेकिन अब इलेक्टोरल बॉन्ड्स की नीति में उसे गायब कर दिया गया है.
चुनावी बॉन्ड्स नीति नागरिकों के जानकारी पाने के अधिकार का हनन करती है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से 2019 के उस अंतरिम आदेश जिसके मुताबिक राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स से हुई आमदनी का विस्तृत ब्योरा निर्वाचन आयोग को सीलबंद लिफाफे में डालकर बताना अनिवार्य था. आयोग ने बताया कि उनके पास बस 2019 में पार्टियों को ओर से आए सीलबंद लिफाफे ही हैं.
निर्वाचन आयोग को मिली जानकारी के मुताबिक राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए कुल 9191 करोड़ रुपए मिले. इसमें से बीजेपी को 5217 करोड़, कांग्रेस को 952 करोड़, टीएमसी को 767 करोड़, टीआरएस को 383 करोड़, वाईएसआर कांग्रेस को 330 करोड़, टीडीपी को 112 करोड़, एनसीपी को 63 करोड़ रुपए इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिले.
इनमें सत्ताधारी दलों को उनकी सालाना आमदनी का औसतन 60 फीसदी बॉन्ड्स से आया बाकी पार्टियों को इनसे मामूली चंदा ही आया. प्रशांत भूषण ने दलील दी कि कई कंपनियां खुद भारी घाटे के बोझ तले दब होने के बावजूद राजनीतिक दलों को करोड़ों रुपए चंदा देती हैं. उन दलों के सत्ता में आने के बाद उनसे लाभ लेती हैं. बॉन्ड्स नीति इस कदर बनाई गई है कि पैसा कई हाथों में से होता हुआ राजनीतिक दल तक पहुंचता है. इसमें धन शोधन की कई स्तरों पर गुंजाइश है.