सुप्रीम कोर्ट में सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के आरक्षण वाले मामले को लेकर बुधवार को भी अहम सुनवाई हुई. EWS को मिल रहे 10 प्रतिशत वाले आरक्षण का विरोध करते हुए कहा गया कि ये समानता के अधिकार का उल्लंघन है और संविधान के साथ भी खिलवाड़ है. एडवोकेट पी विल्सन ने अपनी दलीलें रखते हुए साफ कहा है कि इस प्रकार का आरक्षण संविधान की पहचान को भी बर्बाद करने का काम करता है.
कोर्ट के सामने उन्होंने कहा कि 103वें संशोधन अधिनियम स्पष्ट रूप से संविधान के सिद्धांतों को नजरअंदाज करता है. इसकी पहचान को खत्म करने का प्रयास करता है. ऐसा होने से समानता वाले अधिकार को खतरा हो जाता है. ऐसे मामलों में हमे किसी ऑर्डर के आने का इंतजार नहीं करना चाहिए कि तब जाकर ही कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए. वहीं कुमार ने भी अपनी दलीलें रखते हुए कहा था कि एक पक्ष को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर दूसरों के साथ अन्याय किया जा रहा है.
उन्होंने अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा कि 10 प्रतिशत आरक्षण देने के पीछे का क्या तर्क है. ये तो संविधान के साथ भी एक तरह का धोखा है. यहां आप सिर्फ एक वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण नहीं दे रहे हैं, बल्कि बाकी आबादी से वो 10 प्रतिशत छीन रहे हैं. ये तो जाति के नाम पर भेदभाव नहीं है क्या? इसके जरिए पूरी तरह समानता वाले अधिकार के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
जानकारी के लिए बता दें कि मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय का हवाला देते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य श्रेणी के लोगों के 10 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया था. संसद के दोनों सदनों से इस संबंध में संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद राष्ट्रपति ने भी इस पर मुहर लगा दी थी. जिसके बाद 2019 में एनजीओ समेत 30 से अधिक याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. इन याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किए जाने को चुनौती दी गई है.