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राहुल गांधी को राहत मिलेगी या चली जाएगी सदस्यता? सजा और अयोग्यता पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट

गुजरात के सूरत की एक निचली अदालत ने गुरुवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी ठहराया है. राहुल को दो साल जेल की सजा सुनाई गई है. राहुल पर कथित बयान 'सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों हैं?' के आरोप में केस दर्ज किया गया था. शिकायतकर्ता और बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी का कहना था कि विवादास्पद टिप्पणी से पूरे मोदी समुदाय को ठेस पहुंची है.

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फाइल फोटो)
कांग्रेस नेता राहुल गांधी. (फाइल फोटो)

गुजरात के सूरत की सेशन कोर्ट से कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी संसद सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है. राहुल वायनाड से सांसद हैं और चार साल पुराने के एक बयान के मामले में कोर्ट ने कथित मानमानि का दोषी पाया है. सजा के बाद कोर्ट ने राहुल को जमानत दे दी और हाई कोर्ट में अपील करने की अनुमति देने के लिए 30 दिन के लिए सजा को सस्पेंड कर दिया है. इस संबंध में आजतक ने लोकसभा के पूर्व महासचिव और संवैधानिक विशेषज्ञ पीडीटी आचार्य से बातचीत की है और राहुल गांधी की सजा को लेकर राय जानी है. आचार्य ने ने कई सवालों के जवाब दिए हैं.

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पीडीटी आचार्य से पूछा गया कि आज की स्थिति में क्या राहुल गांधी को अयोग्य घोषित किया जा सकता है? आचार्य ने कहा- नहीं. चूंकि राहुल को दोष सिद्ध के बाद सजा सुनाई गई है और उसे फिलहाल के लिए सस्पेंड किया गया है. आचार्य कहते हैं कि जब सजा को निलंबित कर दिया जाता है और अदालत द्वारा हटा दिया जाता है तो अयोग्यता भी हटा दी जाती है. आचार्य अपने ओपेनियन में कहते हैं- जब कोर्ट खुद सजा को निश्चित अवधि के लिए स्थगित करता है, तब तार्किक रूप से अयोग्यता भी निलंबित हो जाती है और संबंधित सदस्य की सदस्यता बनी रहती है.

अपीलीय कोर्ट में जा सकते हैं राहुल गांधी

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपीलीय कोर्ट में जा सकते हैं और अपील दायर कर सकते हैं. तब कोर्ट को दोषसिद्धि और स्टेटस दोनों को सस्पेंड या स्टे करना पड़ता है, उस स्थिति में यथास्थिति बहाल हो जाएगी और वो कोर्ट द्वारा मामले को निपटाए जाने तक सदन के सदस्य बने रहेंगे.

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राहत नहीं मिली तो बढ़ जाएंगी मुश्किलें

आचार्य कहते हैं कि अयोग्य ठहराए जाने पर परिणाम भुगतने होंगे. अगर राहुल गांधी की सजा को अदालतों द्वारा बरकरार रखा जाता है तो उन्हें 2 साल की सजा काटनी होगी और 6 साल के लिए अयोग्य रहना होगा. हालांकि, RP एक्ट के तहत चुनाव आयोग के पास अयोग्यता को कम करने या करने की शक्तियां हैं.

राष्ट्रपति के निर्णय आने पर हो सकेगी सीट खाली!

राहुल गांधी की अयोग्यता पर पीडीटी आचार्य कहते हैं कि अनुच्छेद 103 कहता है कि राष्ट्रपति मौजूदा सांसदों की अयोग्यता पर निर्णय लेते हैं. हालांकि इस बारे में भ्रम की स्थिति है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अनुच्छेद 103 के ऑपरेशनल महत्व से संबंधित नहीं है. जहां तक ​​स्वत: अयोग्यता का संबंध है, यदि आप सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार जाते हैं तो आप कह सकते हैं कि ऑटोमैटिक डिस्क्वालिफिकेशन हो रहा है. लेकिन अनुच्छेद 103 कहता है कि मौजूदा सदस्यों की अयोग्यता के प्रश्न को चुनाव आयोग से आने वाली राय के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा तय किया जाना है. इसका मतलब है कि इसमें कुछ समय लगेगा और राष्ट्रपति का फैसला आने के बाद ही सीट को खाली घोषित किया जा सकता है.

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उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का फैसला महत्वपूर्ण है. क्योंकि इसकी संवैधानिक आवश्यकता है. लिली थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अनुच्छेद 103 के ऑपरेशनल इंर्पोटेंस से संबंधित नहीं है, इसलिए वहां थोड़ा भ्रम है. सुप्रीम कोर्ट का एक मामला था, जिसमें 3 जजों की बेंच ने सुनवाई की थी. SC ने कहा था कि अयोग्यता का सवाल होने पर राष्ट्रपति का निर्णय महत्वपूर्ण होता है. जब भी ऐसा कोई मामला आता है, तब राष्ट्रपति को अनुच्छेद 103 के तहत यह तय करना होता है. हालांकि 103 के संचालन के महत्व पर ज्यादा विचार नहीं किया गया, इसलिए भ्रम की स्थिति है.

पहले क्या था नियम?

जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) के प्रावधानों के अनुसार, एक मौजूदा सांसद/विधायक, दोषी ठहराए जाने पर 3 महीने की अवधि के भीतर फैसले के खिलाफ अपील या पुनरीक्षण आवेदन दायर करके पद पर बना रह सकता था. इसे 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. 2013 के फैसले के अनुसार, अब यदि एक मौजूदा सांसद/विधायक को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो उसे दोष सिद्ध होने पर तुरंत अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा (सजा दिए जाने पर नहीं) और सीट को खाली घोषित कर दिया जाएगा.

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राहुल गांधी पर क्या बोले पीडीटी आचार्य...

अधिनियम की धारा 8 के तहत जब किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और 2 वर्ष या उससे ज्यादा जेल की सजा दी जाती है तो वो अयोग्य हो जाता है. पहले 3 साल की अवधि वाले मौजूदा सदस्यों के लिए एक अपवाद था, तब अयोग्यता प्रभावी नहीं होती थी. लेकिन 2013 में SC ने कहा कि 3 महीने वैध नहीं हैं और इसे रद्द कर दिया. लेकिन, इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने ही सजा पर रोक लगा दी है. यहां अयोग्यता सीधे तौर पर सजा की अवधि से संबंधित है.

सजा के साथ अयोग्यता भी हो जाती है निलंबित

उन्होंने कहा कि जब सेक्शन 2 वर्ष या उससे ज्यादा कहता है तो इसका अर्थ केवल यही होता है, इसलिए जब अदालत खुद सजा को कुछ समय के लिए निलंबित करती है तो तार्किक रूप से अयोग्यता भी निलंबित हो जाती है और उसकी सदस्यता बनी रहती है. यह मेरा मत है. वह अपीलीय अदालत में जा सकते हैं और अपील दायर कर सकते हैं. अदालत को दोषसिद्धि और स्थिति दोनों को निलंबित या स्थगित करना पड़ता है, उस स्थिति में यथास्थिति बहाल हो जाएगी और वह अदालत द्वारा निपटाए जाने तक सदन के सदस्य बने रहेंगे.

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सजा पर रोक के साथ दोषसिद्धि पर रोक की जरूरत है?

आचार्य कहते हैं कि यह एक नजरिया है, लेकिन आप दूसरी बात कैसे समझाएंगे, जब कानून खुद कहता है कि अगर सजा 2 साल के लिए है तो अयोग्यता होगी. मान लीजिए कि इसकी 2 वर्ष से कम की अयोग्यता होगी. अयोग्यता वाक्य से संबंधित है- जब उस वाक्य को निलंबित कर दिया गया है और हटा दिया गया है तो अयोग्यता का क्या होता है? 

अयोग्यता की अवधि पर...

अयोग्यता के परिणाम होते हैं. यदि निर्णय को बरकरार रखा जाता है तो उसे 2 वर्ष की सजा काटनी होती है, वह उस अवधि के लिए अयोग्य रहता है. वह अगले 6 साल तक अयोग्य रहेगा तो कुल मिलाकर यह 8 साल (2+6) तक चलेगा. लेकिन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत, चुनाव आयोग को अयोग्यता की अवधि को 6 साल से कम करने या पूरी तरह से समाप्त करने की शक्ति दी गई है. वे उस शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन कारण बताना होगा. ये कुछ प्रावधान हैं जिन्हें लागू किया जा सकता है.

 

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