गंगा नदी को फिर प्रदूषण मुक्त करने के लिए भारत सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट चला रखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मां गंगा को साफ करने का प्रण लिया था. लेकिन इस मिशन पर तेज गति से काम नहीं हुआ जिस पर अब इलाहबाद हाई कोर्ट ने भी नाराजगी जाहिर की है. हाई कोर्ट ने गंगा को दुनिया की सबसे प्रदूषित नदी में से एक बता दिया है.
गंगा प्रदूषण पर हाई कोर्ट सख्त
न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी और दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा है कि गंगा दुनिया की सबसे प्रदूषित नदी में से एक है. ये देश की लाइफलाइन है. इसे करोड़ों लोग पूजते हैं. कई लोगों की जीविका इस पर निर्भर करती है. लेकिन फिर भी अब ये नदी काफी ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है.
हाई कोर्ट ने जोर देकर कहा कि गंगा में जो प्रदूषण बढ़ा है, उसकी मुख्य वजह औद्योगिक कचरा और धार्मिक गतिविधियां रही हैं. ऐसे में अब उस प्रदूषण को कम करने में नमामि गंगे प्रोजेक्ट की अहम भूमिका हो सकती है. हाई कोर्ट मानता है कि केंद्र सरकार का ये प्रोजेक्ट राष्ट्रीय महत्व का है और इसे जल्द प्रभावी अंदाज में लागू करना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर ना सिर्फ इस परियोजना की लागत बढ़ती जाएगी, वहीं गंगा को साफ करने वाला मिशन भी अधूरा रह जाएगा.
नमामि गंगे को बताया अहम
याचिकाकर्ताओं से कोर्ट ने कहा है कि अब उन्हें ईमानदारी से इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने पर काम करना चाहिए जिससे असल मायनों में गंगा के प्रदूषण को कम किया जा सके. हाई कोर्ट मानता है कि गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, बल्कि देश का भविष्य भी इस पर निर्भर करता है. उनकी नजरों में अगर गंगा की सेहत ठीक रहेगी तो देश का भविष्य भी मजबूत रहेगा.
विवाद क्या है?
केस की बात करें तो गंगा को साफ करने की जिम्मेदारी नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) को दी गई है. वहीं यूपी के जल निगम को नमामि गंगे परियोजना में कार्यकारी एजेंसी नियुक्त किया गया है. विवाद इस बात पर रहा है कि प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 8 बिडर्स आगे आए थे. लेकिन यूपी जल निगम ने बिना NMCG से सलाह करे 7 विडर्स को रद्द कर दिया था, उसमें से एक बिडर याचिकाकर्ता का भी था. बाद में NMCG ने यूपी जल निगम से उस ऑडर को रद्द करने को कहा और फिर खुद सभी बिडर्स को परखा.
लेकिन अब याचिकाकर्ता ने कहा है कि NMCG ने यूपी जल निगम को उस आदेश को खारिज करने को जरूर कहा, लेकिन उसे प्रभावी कभी नहीं किया गया. इसी वजह से ये याचिका दायर की गई थी.