सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के एक मामले में 6 लोगों को बरी कर दिया. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि दंगों के मामले में यह सुनिश्चित करना अदालतों का कर्तव्य है कि कोई भी प्रत्यक्षदर्शी दोषी न हो और उसकी स्वतंत्रता को छीना नहीं जाए.
जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि दंगों के ऐसे मामलों में, जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हों, अदालतों को उन गवाहों की गवाही पर भरोसा करने में ‘‘सावधानी’’ बरतनी चाहिए, जिन्होंने आरोपियों या उनकी भूमिकाओं का विशेष संदर्भ दिए बिना सामान्य बयान दिए हों.
शीर्ष अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसने राज्य के वडोद गांव में दंगे के मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था और छह लोगों को दोषी ठहराया, जबकि 12 अन्य को बरी कर दिया था. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि 28 फरवरी, 2002 को गांव में दंगा हुआ, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा और पुलिस वाहनों को नुकसान पहुंचा था.
'लोग उत्सुकतावश आ जाते हैं...'
पीठ ने कहा, "समूह संघर्ष के मामलों में जहां बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं, अदालतों पर यह सुनिश्चित करने का भारी कर्तव्य होता है कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दोषी न ठहराया जाए और उसकी स्वतंत्रता से वंचित न किया जाए." शीर्ष अदालत ने कहा कि बहुत बार, खासकर जब अपराध का दृश्य सार्वजनिक स्थान होता है, तो लोग उत्सुकतावश घटना को देखने के लिए घरों से बाहर निकल आते हैं.
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पीठ ने कहा, "ऐसे लोग केवल दर्शक होते हैं, हालांकि गवाह को वे गैरकानूनी सभा का हिस्सा लग सकते हैं. इसलिए, सावधानी के नियम के रूप में और कानून के नियम के रूप में नहीं, जहां रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य यह तथ्य स्थापित करते हैं कि बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे, केवल उन लोगों को दोषी ठहराना सुरक्षित हो सकता है जिनके खिलाफ प्रत्यक्ष कृत्य का आरोप लगाया गया है."
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता उसी गांव के निवासी थे जहां दंगे भड़के थे, इसलिए, घटनास्थल पर उनकी उपस्थिति स्वाभाविक है और अपने आप में दोषसिद्धि नहीं है. इसके अलावा, अभियोजन पक्ष का यह मामला नहीं है कि वे हथियार या विध्वंसक उपकरण लेकर आए थे. इन परिस्थितियों में, घटनास्थल पर उनकी उपस्थिति एक निर्दोष दर्शक की तरह हो सकती है, जिसे निषेधाज्ञा के अभाव में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार था.
नहीं मिले साक्ष्य
अदालत ने कहा कि दोषसिद्धि को बरकरार रखने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह साबित करने के लिए कुछ विश्वसनीय सबूत पेश करने चाहिए थे कि आरोपी एक गैरकानूनी सभा का हिस्सा थे, न कि केवल दर्शक.
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फैसले में कहा गया, "यहां ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला है जिससे यह संकेत मिले कि अपीलकर्ताओं ने भीड़ को उकसाया या उन्होंने खुद किसी भी तरह से ऐसा काम किया जिससे यह संकेत मिले कि वे गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे. पीठ ने कहा कि अपराध स्थल पर केवल मौजूदगी के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अपीलकर्ता गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे. हालांकि, कोर्ट ने ऐसी स्थिति से इंकार नहीं किया जहां हमलावरों की भीड़, जो गैरकानूनी भीड़ के सदस्य थे, ने समान उद्देश्य के लिए हत्या की थी.