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'जीवनसाथी का चुनाव अपराध कैसे?' लव जिहाद कानून पर CJI के सामने वकीलों की दलील

लव जिहाद के केस में सोमवार को CJI की अदालत में सुनवाई हुई. याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह और सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील पेश की. इस दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि जीवनसाथी का चुनाव अपराध कैसे हो सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट (File Photo)
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

लव जिहाद कानून के मुद्दे पर सोमवार को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) की अदालत में याचिकाकर्ता के वकीलों ने अपनी दलीलें रखीं. सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ने दलील पेश करते हुए उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कानूनों पर सवाल उठाए.

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सीनियर वकील सीयू सिंह ने कहा कि अपने जीवन साथी या मित्र का चुनाव करना बुनियादी हक है. कोई इसे रोक नहीं सकता. दलील देते हुए उन्होंने कहा कि विवाह के उद्देश्य को ही अपराध बना दिया गया है. जीवन साथी का चुनाव करना अपराध कैसे हो सकता है? ये तो अधिकार है. 

कोर्ट में सीजेआई ने पूछा कि आपने (याचिकाकर्ता) इन कानूनों के प्रावधानों को चुनौती दी है? इस पर सीयू सिंह ने कहा कि हम (याचिकाकर्ता) असंवैधानिक और मनमाने प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए अदालत में आए हैं. कोर्ट ने पूछा कि क्या किसी हाईकोर्ट में भी ये मामले लंबित हैं? इस पर वकीलों ने कहा कि UP और उत्तराखंड में ये कानून हाईकोर्ट में लंबित हैं. 

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित राज्यों के कानून में बुनियादी खामी हैं. वहां विवाह का मकसद बताना होगा कि आखिर मकसद सिर्फ विवाह करना है या धर्मांतरण कराना?

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गुजरात में किया गया था संशोधन

बता दें कि जबरन धर्मांतरण को रोकने के मकसद से गुजरात में 2003 से कानून है. इस कानून में अप्रैल 2021 में संशोधन किए गए. ये कानून गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन (अमेंडमेंट) एक्ट 2021 को नाम दिया गया. ये कानून 15 जून 2021 से लागू हो गया. इस कानून के तहत किसी दूसरे धर्म की लड़की को बहला-फुसलाकर, धोखा देकर या लालच देकर शादी करने के बाद उसका धर्म परिवर्तन करवाने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है. वहीं, अगर लड़की नाबालिग है तो 7 साल की कैद और 3 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है.

हाईकोर्ट ने लगाई थी धाराओं पर रोक

गुजरात के इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. इसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने चुनौती दी थी. जमीयत ने याचिका दायर कर कानून की कुछ धाराओं को असंवैधानिक बताते हुए उन पर रोक लगाने की मांग की थी. इस पर 19 अगस्त 2021 को गुजरात हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि पुलिस में FIR तब तक दर्ज नहीं हो सकती, जब तक ये साबित नहीं हो जाता कि शादी जोर-जबरदस्ती से या लालच में फंसाकर की गई है. गुजरात हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस कानून की धारा 3, 4, 4A से 4C, 5 और 6A पर रोक लगा दी थी.

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