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दिल्ली में अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जानें केंद्र ने क्या बड़ी दलीलें दीं?

केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली में तबादलों के मामले में मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिशें या अनुरोध उपराज्यपाल मानते आए हैं. लेकिन दिल्ली सरकार कई सालों से जनता के बीच यही धारणा बनाने में जुटी है कि उपराज्यपाल और केंद्र सरकार उसे कोई काम नहीं करने दे रहे हैं.

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सांकेतिक तस्वीर.
सांकेतिक तस्वीर.

दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच केंद्रीय सेवा कैडर के अधिकारियों की तैनाती और तबादले के अधिकार पर कानूनी विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कई अहम दलीलें दीं. मेहता ने कोर्ट को बताया कि 2017 तक काफी सौहार्द पूर्ण तौर पर दिल्ली में काम और बड़े-बड़े आयोजन भी हुए. जबकि कई बार तो केंद्र और दिल्ली में अलग-अलग विचारधारा की सरकारें थीं. कुछ अवधि में तो विपरीत विचारधारा वाली सरकारें भी रहीं, लेकिन सभी काम संविधान के दायरे में सुचारू रूप से चलते रहे. 

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उन्होंने आगे कहा- हाल के वर्षों की बात करें तो 2017 से लेकर अब तक इन पांच सालों में उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार की 18000 से ज्यादा फाइलों को अपनी मंजूरी दी है. जबकि 1992 में दिल्ली का प्रशासन विधानसभा और दिल्ली सरकार के हाथों में जाने के बाद से सिर्फ सात मौके आए हैं, जब दिल्ली सरकार की किसी योजना को उपराज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास भेजा हो. रही बात नौकरशाहों यानी सिविल सर्वेंट्स की तैनाती और तबादलों की तो हमेशा व्यवहार और बर्ताव में यही होता आया है कि मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल इन नौकरशाहों का मूल्यांकन करते हैं. उपराज्यपाल उसका समर्थन करते हैं. तबादलों के मामले में भी मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिशें या अनुरोध उपराज्यपाल मानते आए हैं. लेकिन दिल्ली सरकार कई सालों से जनता के बीच यही धारणा बनाने में जुटी है कि उपराज्यपाल और केंद्र सरकार उसे कोई काम नहीं करने दे रहे हैं. यहां संवैधानिक प्रावधानों की कोई अड़चन नहीं है. बात सोच और नीयत की है.

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'दिल्ली भी संघ का ही विस्तार है'
 
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि राजधानी पूरे देश की होती है. केंद्र सरकार को एक योजना के अनुसार भूमिका निभानी होती है. उस योजना ने अब तक पूरी तरह से काम किया है. दिल्ली भी अंततः संघ का ही विस्तार है. राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते रणनीतिक नजरिए से भी इसे संघ के अधीन ही होना चाहिए. उस संवैधानिक संघीय ढांचे से अलग नहीं है. रणनीतिक दृष्टि से अहम होने से ही किसी क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाता है. अगर ऐसा नहीं होता तो राज्य ही क्यों न बना दिया जाता. अधिकारियों को स्थायी निर्देश दिए जा सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं.

कोर्ट ने पूछा- नियुक्तियां और तबादले कौन करता है?

दिल्ली सरकार की ओर से मुख्य वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पूरी कीं. उनकी दलील के बीच चीफ जस्टिस ने पूछा कि आपके पास अस्पताल, स्कूल और अन्य संस्थान हैं. उन पर किसका नियंत्रण है? नियुक्तियां और तबादले कौन करता है? दिल्ली सरकार की ओर से शादान फरासत ने भी दलील रखते हुए कई यूरोपीय देशों के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासन और स्थानीय निकाय प्रशासन की तुलना की.

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'चुनी हुई सरकार को प्रशासन की बारीकियां समझनी होंगी'

बाद में केंद्र सरकार और दिल्ली प्रशासन, राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें शुरू की. मेहता ने 239aa की खासियत बताते हुए इसकी व्याख्या की और कहा- दिल्ली की चुनी हुई सरकार को यहां के प्रशासन की बारीकियां समझनी होगी. ये मानते हुए कि यहां विधान के मुताबिक उपराज्यपाल ही सर्वोपरि है. सरकार उपराज्यपाल की है इसे मानते हुए सरकार यानी मंत्रिमंडल को वैचारिक परिपक्वता के साथ प्रशासन चलाना होगा.

आज भी जारी रहेगी सुनवाई

मेहता ने कहा कि यह दलील गलत है कि उपराज्यपाल निर्वाचित सरकार की अवहेलना कर सब कुछ कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासनिक लिहाज से दिल्ली केंद्र का ही एक्सटेंशन है. राष्ट्रीय राजधानी को केंद्र के साथ पंगे का अड्डा नहीं बनाना चाहिए. तो फिर केंद्र शासित प्रदेश बनाने की वजह क्या है? फिर तो सीधे राज्य ही बना दीजिए. सीधी वजह है कि रणनीतिक तौर पर वो अहम क्षेत्र हैं जिन पर केंद्र का नियंत्रण जरूरी है. सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी. उम्मीद है कि राज्यपाल की दलीलें गुरुवार को पूरी हो जाएंगी.


 

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