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Hijab Row: अगर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला तो ये फैसले बन सकते हैं नजीर, जानिए...

कानून के जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में अंतिम सुनवाई और फैसला तो सुप्रीम कोर्ट ही करेगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से जो भी पक्ष संतुष्ट नहीं होगा उसका सुप्रीम कोर्ट का रुख करना तय माना जा रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तय माना जा रहा हिजाब विवाद का सुप्रीम कोर्ट पहुंचना
  • ड्रेस कोड से संबंधित मामलों में भी कोर्ट ने सुनाए हैं फैसले

हिजाब को लेकर कानूनी, राजनीतिक और धार्मिक विवाद पर कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. कर्नाटक हाईकोर्ट इस मसले पर सुनवाई कर जो भी फैसला दे, मामले का सुप्रीम कोर्ट पहुंचना तय माना जा रहा है. कानून के जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में अंतिम सुनवाई और फैसला तो सुप्रीम कोर्ट ही करेगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से जो भी पक्ष संतुष्ट नहीं होगा उसका सुप्रीम कोर्ट का रुख करना तय माना जा रहा है. फिर सुप्रीम कोर्ट इसी तरह के कई मामलों में अपने पुराने फैसलों को ध्यान में रखते हुए इस विवाद पर पूर्ण विराम लगाएगा.

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मुमकिन है कि संविधान से जुड़े पहलू की व्याख्या करने के मकसद से संविधान पीठ इस मामले में सुनवाई करे. चूंकि मौलिक अधिकार और धार्मिक मान्यता के बीच उठे ऐसे ही विवाद पर पांच जजों की संविधान पीठ पहले भी फैसला दे चुकी है तो शायद सात जजों की पीठ उसकी और व्याख्या करे. कोर्ट दरअसल यह व्याख्या करता है कि ऐसी स्थिति में संविधान क्या कहता है. कोर्ट की व्याख्या धर्म का धुरी सिद्धांत यानी किसी भी धार्मिक मान्यता का अभिन्न अंग क्या है,  इस पर होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने दशकों पहले इसी तरह के विवाद में अजमेर की दरगाह कमेटी बनाम सैयद हुसैन अली के बीच हुए विवाद में फैसला सुनाया था. तब ऐसी शुरुआत हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक संवैधानिक रूप से योग्य धार्मिक व्यवहार का अनुपालन करने की अनुमति तो नागरिकों को है लेकिन उसके साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य, नैतिकता और अन्य कई मानदंड भी हैं जिनकी कसौटी पर धार्मिक व्यवहार को कसा जाता है. कोर्ट के पिछले फैसलों के मुताबिक हिजाब विवाद पर जो स्थिति आज है उस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ याचिकाकर्ताओं की दलील से संतुष्ट हो जाती है कि उनका यह व्यवहार उस संबंधित धर्म के धुरी सिद्धांत के मुताबिक है यानी अभिन्न अंग है तो कोर्ट उस मुताबिक अपना निर्णय देगा.

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कुल मिलाकर धर्म का केंद्रीय विश्वास ही उसका आवश्यक हिस्सा माना जाता है. उस धार्मिक व्यवहार को तभी आवश्यक माना जाएगा जब उसके बिना संबंधित धर्म, धर्म नहीं रह जाता. इस मामले की सुनवाई के दौरान पक्षकारों को धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या कर यह सिद्ध करना होगा कि बिना हिजाब के इस्लाम का मूल स्वरूप नहीं रह पाएगा. इस सिलसिले में जजों को भी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना होगा. उनमें से वे आधार तलाशने होंगे जो उनके फैसले को आयाम देंगे. जब धार्मिक मान्यताओं पर वे संतुष्ट होंगे, उसके बाद कोर्ट देखेगा कि क्या ये व्यवहार संविधान में वर्णित अनुच्छेद 25 और 26 में दिए गए उपबंधों और प्रतिबंधों के मुताबिक हैं?

ये प्रतिबंध सार्वजनिक व्यवस्था नैतिकता सार्वजनिक स्वास्थ्य और संविधान, इन सभी कसौटी पर खरे उतरेंगे तभी उनको हरी झंडी दी जाएगी. अनुच्छेद 25 के मुताबिक किसी भी नागरिक के व्यवहार से सार्वजनिक व्यवस्था, जन स्वास्थ्य और नैतिकता पर असर नहीं पड़ना चाहिए. सभी व्यक्ति अपने विश्वास और धर्म के मुताबिक व्यवहार प्रचार प्रसार करने के लिए स्वतंत्र हैं, क्योंकि यह मौलिक अधिकार है. लेकिन पूर्ण अधिकार नहीं. कानून के जानकारों की मानें तो इस पर तार्किक तौर पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं.

मद्रास हाईकोर्ट ने 2006 में क्या दिया था फैसला

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अब मद्रास हाईकोर्ट के सन 2006 में आए फैसले को ध्यान में रखें तो कोर्ट ने उस में कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को बिना हिजाब फोटो नहीं खिंचवाना चाहिए. चुनाव आयोग का यह निर्देश अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं करता क्योंकि वह पहचान पत्र, पहचान बताने के लिए ही है. जैसे सिख को उनके धर्म के अनुसार पगड़ी पहनने और कृपाण धारण करने की अनुमति है. ये उनके सिख धर्म का अभिन्न अंग है लेकिन एक निश्चित साइज से बड़ा कृपाण उन्हें वायुयान में धारण करने की अनुमति नहीं है क्योंकि, यह सार्वजनिक व्यवस्था और जन सुरक्षा के खिलाफ है.

पुरोहितों की नियुक्ति को लेकर क्या था कोर्ट का फैसला

इसी सिद्धांत पर कोर्ट ने मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति को लेकर उठे विवाद का फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी भी पुजारी का पुरोहित वर्ग से होना जरूरी नहीं है. सनातन धर्म में सिर्फ इसी को धर्म का अभिन्न अंग नहीं माना गया है. इसके बाद 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मार्ग के अनुयायियों की याचिका पर भी फैसला सुनाते हुए कहा था कि तांडव नृत्य आनंद मार्ग की आस्था का केंद्रीय तत्व नहीं है. 

स्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था

इतिहास के पन्नों पर 1994 का स्माइल फारुकी केस भी दर्ज है. इसमें सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी एक नजीर है. इसमें कोर्ट ने कहा था कि मस्जिद में ही नमाज अदा करना इस्लाम की आस्था का केंद्रीय तत्व नहीं है. इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. नमाज कहीं भी अदा की जा सकती है. राजस्थान हाईकोर्ट ने भी जैन संप्रदाय में अन्न जल छोड़कर अपना जीवन समाप्त करने की संथारा प्रथा को जैन धर्म का अभिन्न अंग नहीं माना था. इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका अभी तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ऐसे कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले सुनाए हैं. जैसे राष्ट्रगान गाने का मामला हो या किसी भी तरह की ड्रेस कोड का.

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