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CBI की वो चूक... जिस कारण चंदा-दीपक कोचर को मिली जमानत, जानें गिरफ्तारी के क्या हैं नियम?

वीडियोकॉन लोन मामले में आरोपी चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि चंदा और दीपक कोचर की गिरफ्तारी कानून के अनुसार नहीं हुई थी. ऐसे में जानना जरूरी है कि सीबीआई से कहां गलती हो गई और किसी को गिरफ्तार करने के नियम क्या होते हैं?

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दीपक कोचर और चंदा कोचर. (फाइल फोटो)
दीपक कोचर और चंदा कोचर. (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने ICICI बैंक की पूर्व सीईओ और एमडी चंदा कोचर (Chanda Kochhar) और उनके पति दीपक कोचर (Deepak Kochhar) को जमानत दे दी है. हाईकोर्ट ने कहा कि इन दोनों की गिरफ्तारी नियमों के मुताबिक नहीं हुई थी. हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर जेल से बाहर आ गए हैं.

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वीडियोकॉन लोन मामले में सीबीआई ने पिछले साल 22 दिसंबर को चंदा कोचर और उनके पति को गिरफ्तार किया था. दोनों ने इस गिरफ्तारी को 'गैरकानूनी' बताते हुए हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी दाखिल की थी.

चंदा कोचर और दीपक कोचर की गिरफ्तारी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने गैरकानूनी माना है. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पीके चव्हाण की बेंच ने अपने 49 पेज के आदेश में कहा कि इन्हें कानून के हिसाब के गिरफ्तार नहीं किया गया था.

चंदा और दीपक कोचर के वकीलों ने हाईकोर्ट में दलील दी कि सीबीआई ने चार साल तक कुछ नहीं किया, लेकिन जब दोनों अपना बयान दर्ज करवाने दिल्ली गए तो उन्हें अचानक गिरफ्तार कर लिया गया. उनके वकीलों ने दावा किया कि कोचर दंपति सहयोग कर रहे थे. वहीं, सीबीआई ने कहा कि वो जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे. इस पर हाईकोर्ट ने कहा, 'चूंकि आरोप कुछ कबूल नहीं कर रहा है तो ये नहीं कहा जा सकता है कि वो जांच में सहयोग नहीं कर रहा.'

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कहां चूक गई सीबीआई?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि सीबीआई ने चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को नियमों के हिसाब से गिरफ्तार नहीं किया. 

कोर्ट ने कहा कि कोचर दंपति की गिरफ्तारी में सीआरपीसी की धारा 41A का पालन नहीं किया गया. इस धारा के तहत गिरफ्तारी से पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

बेंच ने कहा कि हम मानते हैं कि गिरफ्तारी कानून के हिसाब से नहीं हुई. इसलिए सीआरपीसी की धारा 41(1)(b)(ii), 41A और 60A का पालन न करने से याचिकाकर्ताओं (चंदा और दीपक कोचर) को जमानत पर रिहा करने का लाभ मिलता है.

अदालत ने ये भी कहा कि अरेस्ट मेमो में याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार करने का जो कारण सीबीआई ने बताया है, उस आधार पर गिरफ्तारी नहीं हो सकती. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की ओर से जो कारण दिए गए हैं, वो इस बात का खुलासा नहीं करते कि गिरफ्तारी एक या उससे ज्यादा मकसद को पूरा करने के लिए जरूरी थी.

कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को गिरफ्तार किया जाता है और सीआरपीसी की धारा 41 के तहत कार्रवाई नहीं हुई हो तो अदालत आरोपी को रिहा करने का आदेश देने के लिए बाध्य है. 

दो जजों की बेंच ने कहा कि जब किसी आरोपी को गिरफ्तार किया जाता है और उसे कोर्ट के सामने पेश किया जाता है तो ये जज की जिम्मेदारी है कि वो गिरफ्तारी के सभी कारणों को देखे और ये भी देखे कि क्या ये कारण प्रासंगिक हैं.

कोचर दंपति को गिरफ्तार क्यों किया था?

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चंदा कोचर पर आरोप है कि ICICI बैंक की सीईओ और एमडी रहते हुए उन्होंने नियमों को ताक पर रखते हुए वीडियोकॉन को लोन दिया. ऐसा उन्होंने अपने पति दीपक कोचर को फायदा पहुंचाने के लिए किया था. ये मामला मार्च 2018 में सामने आया था. इसके बाद चंदा कोचर को बैंक की एमडी और सीईओ पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

2009 में चंदा कोचर को ICICI बैंक की एमडी और सीईओ बनाया गया. उसी साल बैंक की कमेटी ने वीडियोकॉन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (VIEL) को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर किया. बैंक की जिस कमेटी ने वीडियोकॉन का लोन मंजूर किया था, उसकी हेड चंदा कोचर थीं. 

लोन मिलने के बाद वीडियोकॉन ने नूपॉवर रिन्यूएबल लिमिटेड (NuPower Renewable Limited) में 64 करोड़ रुपये का निवेश किया. नूपॉवर रिन्यूएबल कंपनी की शुरुआत दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत (वीडियोकॉन के मालिक) ने मिलकर की थी. 2009 में वेणुगोपाल धूत ने नूपॉवर रिन्यूएबल के सारे शेयर दीपक कोचर के नाम कर दिए थे.

सीबीआई के मुताबिक, बैंक की कमेटी ने 26 अगस्त 2009 को वीडियोकॉन को 300 करोड़ रुपये का लोन मंजूर किया. 7 सितंबर 2009 को ये लोन वीडियोकॉन को दिया गया. अगले ही दिन यानी 8 सितंबर को वीडियोकॉन ग्रुप ने इस लोन से 64 करोड़ रुपये नूपॉवर रिन्यूएबल को दिए.

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इन 300 करोड़ के अलावा ICICI बैंक ने 2009 से 2011 के बीच वीडियोकॉन ग्रुप को पांच अलग-अलग लोन के जरिए 1,575 करोड़ रुपये दिए. 

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, चंदा कोचर के एमडी और सीईओ रहते हुए ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को 3,250 करोड़ रुपये का लोन दिया था. ये लोन बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, आरबीआई की गाइडलाइंस और बैंक की क्रेडिट पॉलिसी का उल्लंघन कर दिया गया.

सीबीआई सूत्रों का दावा है कि उनके पास ये साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि चंदा कोचर, दीपक कोचर और वेणुगोपाल धूत ने मिलकर ये पूरी साजिश रची.

गिरफ्तारी के नियम क्या हैं?

कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर यानी सीआरपीसी में बताया गया है कि पुलिस कब किसी को गिरफ्तार कर सकती है? गिरफ्तारी के दौरान और बाद में क्या-क्या प्रक्रिया अपनानी जरूरी है? सीआरपीसी की धारा 41 से 60 पुलिस को गिरफ्तारी का अधिकार देती है.

धारा 41 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. हालांकि, अगर पुलिस को लगता है कि अपराधी सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है या उसने संज्ञेय अपराध किया है या वो भाग सकता है तो उसे वारंट और मजिस्ट्रेट के आदेश के बगैर भी गिरफ्तार कर सकती है. 

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धारा 41A कहती है कि अगर आरोपी की गिरफ्तारी जरूरी नहीं है तो उसे नोटिस जारी किया जाएगा. नोटिस के बाद ये आरोपी की जिम्मेदारी है कि वो पुलिस के सामने पेश हो. अगर आरोपी पेश नहीं होता है तो अदालत के आदेश पर उसे गिरफ्तार किया जा सकता है.

वहीं, धारा 41B में लिखा है कि गिरफ्तार करते समय ये पुलिस अधिकारी की जिम्मेदारी है कि आरोपी के परिवार को इसकी जानकारी दे. 

धारा 41D के तहत, अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस पूछताछ के दौरान उसे अपने वकील से मिलने का अधिकार होगा. हालांकि, पूरी पूछताछ के दौरान वकील मौजूद नहीं रहेगा.

पीएम-सीएम, सांसद-विधायक की गिरफ्तारी के नियम

कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर की धारा 135 के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, मुख्यमंत्री, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को गिरफ्तारी से छूट मिली है. ये छूट सिर्फ सिविल मामलों में है. क्रिमिनल मामलों में नहीं.

इस धारा के तहत संसद या विधानसभा या विधान परिषद के किसी सदस्य को गिरफ्तार या हिरासत में लेना है तो सदन के अध्यक्ष या सभापति से मंजूरी लेना जरूरी है. धारा ये भी कहती है कि सत्र से 40 दिन पहले, उस दौरान और उसके 40 दिन बाद तक ना तो किसी सदस्य को गिरफ्तार किया जा सकता है और ना ही हिरासत में लिया जा सकता है.

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इतना ही नहीं, संसद परिसर या विधानसभा परिसर या विधान परिषद के परिसर के अंदर से भी किसी सदस्य को गिरफ्तार या हिरासत में नहीं ले सकते, क्योंकि अध्यक्ष या सभापति का आदेश चलता है. चूंकि प्रधानमंत्री संसद के और मुख्यमंत्री विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य होते हैं, इसलिए उन पर भी यही नियम लागू होता है.

ये छूट सिर्फ सिविल मामलों में मिली है. क्रिमिनल मामलों में नहीं. यानी, क्रिमिनल मामलों में संसद के सदस्य या विधानसभा के सदस्य या विधान परिषद के सदस्य को गिरफ्तार या हिरासत में लिया जा सकता है, लेकिन उसकी जानकारी अध्यक्ष या सभापति को देनी होती है.

संविधान के तहत राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल को सिविल के साथ-साथ क्रिमिनल मामलों में भी गिरफ्तारी से छूट मिली है. राष्ट्रपति और राज्यपाल को पद पर रहते हुए गिरफ्तार या हिरासत में नहीं लिया जा सकता है. उन्हें तभी गिरफ्तार किया जा सकता है जब या तो उनका कार्यकाल खत्म हो जाए या फिर वो पद से इस्तीफा दे दें.

 

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