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ISRO जासूसी केस: CBI ने सीलबंद लिफाफे में फाइल की प्राथमिक जांच रिपोर्ट

एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पूछताछ की यह प्रारंभिक रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में फाइल की है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी जासूसी केस में नंबी नारायण को फंसाने वाले जिम्मेदार अफसरों की 'चूक और कमीशन के कृत्यों' की जांच के लिए कमेटी बनाई थी.

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सीबीआई ने फाइल की प्राथमिक जांच रिपोर्ट
सीबीआई ने फाइल की प्राथमिक जांच रिपोर्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सीबीआई ने फाइल की प्राथमिक जांच रिपोर्ट
  • शुरुआती पूछताछ पर आधारित है यह रिपोर्ट

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्रारंभिक रिपोर्ट फाइल की है. एजेंसी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पूछताछ की यह प्रारंभिक रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में फाइल की है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी जासूसी केस में नंबी नारायण को फंसाने वाले जिम्मेदार अफसरों की 'चूक और कमीशन के कृत्यों' की जांच के लिए कमेटी बनाई थी.

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सुप्रीम कोर्ट ने CBI को निर्देश दिया कि जैन कमेटी रिपोर्ट को शुरुआती जांच रिपोर्ट मानते हुए इस मामले की जांच की जाए. रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा. 

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) डी के जैन की अध्यक्षता में 14 सितंबर, 2018 को तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था और केरल सरकार को नारायणन के ‘घोर अपमान’ के लिए उन्हें 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था. समिति ने हाल में अपनी रिपोर्ट सौंपी है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण ने कहा कि सीबीआई जांच एक बड़ी सफलता है, लेकिन मेरे पास कहने को कुछ नहीं है, जब तक मैं जैन कमेटी की रिपोर्ट नहीं देख लेता, तब तक कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं, रिपोर्ट में कुछ ऐसा होगा, जिसे वे (सुप्रीम कोर्ट) सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं. 

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क्या है पूरा मामला 
गौरतलब है कि तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन इसरो के सायरोजेनिक्स विभाग के प्रमुख थे, जब वो एक जासूसी कांड में फंसे. नवंबर 1994 में नंबी नारायणन पर आरोप लगा था कि उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ी कुछ गोपनीय सूचनाएं विदेशी एजेंटों से साझा की थीं. नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. 

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वह स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने में लगे थे. उन पर स्वदेशी तकनीक विदेशियों को बेचने का आरोप लगाया गया. बाद में CBI जांच में यह पूरा मामला झूठा निकला. 1998 में खुद के बेदाग साबित होने के बाद नारायणन ने उन्हें फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ी.

इस मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में उन्हें 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. साथ ही, उन्हें जासूसी के झूठे आरोप में फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर विचार के लिए पूर्व जज जस्टिस डी के जैन को नियुक्त किया. नंबी नारायण पर ही 'रॉकेट्री- द नंबी इफेक्ट' फिल्म बनाई गई है, जिसमें उनका रोल आर माधवन कर रहे हैं.

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