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दूसरी बार कानूनी अखाड़ा छोड़ेंगे ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी के पैरोकार, फिर अर्जी वापस लेने की बात कही

Varanasi News: वाराणसी ज्ञानवापी मामले से मुख्य याचिकाकर्ता जितेंद्र सिंह बिसेन इस मामले में पहले भी कई बार दावे-वादे और बयान देकर पीछे हट चुके हैं. सबसे पहले 8 मई 2022 को जब ज्ञानवापी परिसर का सर्वे चल रहा था तो बिसेन ने मुकदमे से हाथ खींच लेने की बात कही थी.

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ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी के पैरोकार जितेंद्र सिंह का मुकदमा छोड़ने का ऐलान.
ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी के पैरोकार जितेंद्र सिंह का मुकदमा छोड़ने का ऐलान.

वाराणसी ज्ञानवापी मामले से मुख्य याचिकाकर्ता और विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह बिसेन दूसरी बार कानूनी अखाड़ा छोड़कर भागने की बात कह रहे हैं. वह अदालत से इस मामले में अपने सहित पत्नी और भतीजी की अर्जी वापस लेने की बात कह चुके हैं. बिसेन ने अपने इस निर्णय के पीछे संसाधनों का अभाव बताया है. हालांकि, उनके वकील शिवम गौर ने बिसेन के मुकदमा न लड़ने के पीछे उनका अजीब रवैया बताया है. 

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ज्ञानवापी मामले से जुड़े अन्य प्रमुख पक्षकार के वकील विष्णु शंकर जैन के मुताबिक, बिसेन के इस कदम से मुकदमे की मूल भावना और मेरिट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. ये वैसा ही होगा जैसे अयोध्या मामले में चल रही सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता परमहंस रामचंद्र दास ने भी अपनी अर्जी वापस ले ली थी. लेकिन दुनिया ने देखा कि इसका मुकदमे की मेरिट पर कोई असर नहीं हुआ.
 
जैन के मुताबिक, फिलहाल इस ज्ञानवापी और श्रृंगार गौरी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाओं के नियमित सेवा पूजा के अधिकार को लेकर आठ सिविल सूट के 28 वादी हैं.
 
बता दें कि बिसेन इस मामले में पहले भी कई बार दावे-वादे और बयान देकर पीछे हट चुके हैं. सबसे पहले 8 मई 2022 को जब ज्ञानवापी परिसर का सर्वे चल रहा था तो बिसेन ने मुकदमे से हाथ खींच लेने की बात कही थी. फिर करीब तीन महीने पहले अपने मुकदमे की पावर ऑफ अटॉर्नी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देने की बात कही. इस पर भी कानून के जानकारों ने कहा कि जब उत्तर प्रदेश सरकार खुद पक्षकार है तो मुख्यमंत्री किसी याचिकाकर्ता के लिए कैसे मुकदमा लड़ सकते हैं? इस दौरान भी बिसेनन ने कई बार अपने ऊपर हमले होने की बात कही लेकिन मेडिकल और पुलिस जांच में एक भी दावे की पुष्टि नहीं हो पाई.

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फिलहाल बिसेन की भतीजी राखी सिंह उन पांच महिला याचिकाकर्ताओं में शामिल है, जिन्होंने देवी श्रृंगार गौरी की पूजा साल में एक दिन चैत्र शुक्ला चतुर्थी के बजाय प्रतिदिन करने का अधिकार बहाल करने की गुहार अदालत से लगाई थी.

हाल ही में बिसेन के वकील शिवम गौर ने इस मामले में पैरवी करने से हाथ खींचने का ऐलान किया था. गौर का कहना था कि मुवक्किल उनको मामले से संबंधित कुछ बताते नहीं और फीस भी नहीं दे रहे हैं.

बिसेन और उनकी पत्नी किरण सिंह, भतीजी राखी सिंह सहित 5 महिला श्रद्धालुओं ने अगस्त 2021 में देवी श्रृंगार गौरी की नियमित सेवा पूजा के अधिकार के लिए मूल याचिका दाखिल की थी. लेकिन साल बीतने से पहले ही मई 2022 में ही उनके रास्ते अलग हो गए. यानी राखी सिंह और बिसेन की पत्नी किरण सिंह अन्य याचिकाकर्ताओं से अलग हो गए.

पहले राह अलग हुई, वकील अलग हुए और अब बिसेन पूरे मामले से ही अलग हो गए हैं. इसका कारण जितेंद्र सिंह बिसेन ने देश और सनातन धर्म के हित में लिया गया फैसला बताया. बिसने का कहना है कि विधर्मी और धर्म विरोधी लोग हमें सता रहे थे. समाज भी उन लोगों के साथ खड़ा दिख रहा है जो ज्ञानवापी को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी को नजराने की तरह सौंप देना चाहते हैं. 

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