जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ भारत के नए मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं. बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड न्यायिक बिरादरी में ऐसे फैसले देने के लिए जाने जाते हैं जो विधि शास्त्र में मील का पत्थर बन गए हैं. हाल ही के फैसले की बात करें तो नोएडा के ट्विन टावर को गिराने का फैसला उन्हीं ने दिया था.
जस्टिस चंद्रचूड की चर्चा एक और फैसले के लिए होती है जब उन्होंने अपने ही जज के पिता वाई वी चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया गया था. जब उनके पिता ने ये फैसला दिया था तो वे भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश थे. सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने से पहले एक इंटरव्यू में जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि आखिर क्यों, कैसे और किन परिस्थितियों में उन्होंने अपने पिता का फैसला पलटा था.
हर पीढ़ी के जजों का अपना सामाजिक और संवैधानिक परिवेश
इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि 'हर पीढ़ी के जज अपने समय के सामाजिक और संवैधानिक परिवेश में काम करते हैं. संविधान एक सतत बदलने वाला दस्तावेज है. मेरे पिता ने जो निर्णय लिखा...उसमें वो उस समय के मुताबिक विश्वास करते थे...हमने कई निर्णय सुनाये हैं जो आज की परिस्थिति को सूट करता है'
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पचास साल बाद संविधान और विकसित हुआ है, नई अवधारणा चलन में आई है.
क्या था पिता का फैसला जिसे डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला
ये फैसला 1975 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के बाद देश में हुई कानूनी जंग से जुड़ा हुआ है. इसे एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला के नाम से जाना जाता है. देश में जब इमरजेंसी लगी तो नागरिकों को अनुच्छेद 21 (यानी जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मिले मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए अदालतों में जाने के अधिकार को निलंबित कर दिया गया.
जब सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन सरकार के इस फैसले को चुनौती दी गई तो 28 अप्रैल, 1976 को 4:1 के बहुमत से अदालत ने सरकार के इस कदम को सही माना. यानी कि ऐसी परिस्थिति में सरकार किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकती है और लोगों को सुरक्षा के लिए संवैधानिक अदालतों में जाने का अधिकार नहीं होगा.
जिन 4 जजों ने तत्कालीन इंदिरा सरकार के इस फैसले को सही माना था उनमें जस्टिस राय, जस्टिस बेग, जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ (जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता) और जस्टिस भगवती थे. जबकि जस्टिस एच आर खन्ना ने इस सरकार के इस फैसले को गलत बताया और इसके खिलाफ फैसला दिया था.
लगभग 41 साल बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के इस फैसले को पलट दिया था. उन्होंने कहा था कि एडीएम जबलपुर केस में बहुमत के साथ सभी चार न्यायाधीशों की ओर से दिया गया फैसला गम्भीर रूप से त्रुटिपूर्ण है.
जब मैंने पिता के फैसले को पलटा...
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने इंटरव्यू में कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि किसी भी पीढ़ी का जज ये दावा कर सकता है कि उसने जो फैसला दे दिया वो अनंत काल कानून बना ही रहेगा. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "हम अपने दौर के समाज के लिए वहीं और उस समय अपनी काबिलियत के सर्वोच्च स्तर पर निर्णय करते हैं. और जब मैंने पिता के फैसले को पलटा तो ये मेरे पिता के द्वारा सुनाया गया निर्णय था लेकिन आखिरकार ये एक निर्णय ही तो था."
क्या आप अपने पिता के फैसले को पलटने की प्रतीक्षा कर रहे थे?
इंटरव्यू के दौरान जब जस्टिस चंद्रचूड से पूछा गया कि वे इस फैसले को पलटने की प्रतीक्षा कर रहे थे, तो उन्होंने कहा कि नहीं ऐसा कतई नहीं है. उन्होंने कहा, "जब मैंने पु्ट्टास्वामी केस में उस फैसले को लिख लिया, जहां मैंने कहा कि मैं जबलपुर एडीएम को पलट रहा हूं, मुझे याद है मैंने अपने सेक्रेटरी को कहा कि आज के दिन अब हमलोग काम करना बंद कर रहे हैं, मैं अंदर आया और कहा अब पीछे मुड़ने का और आत्ममंथन करने का समय है."
फर्क नहीं पड़ता है कि आपके सामने कौन है...
उन्होंने कहा कि यह पाखंड होगा अगर मैं आपको ये न कहूं कि हां वहां एक निजता का भी तत्व था क्योंकि आप जानते हैं कि आप जिस फैसले को पलटने जा रहे हैं उसे किसने लिखा है. लेकिन इतना कहने के बाद मैं ये कहना चाहूंगा कि आपने इसे इसलिए पलटा क्योंकि आखिरकार ये एक फैसला ही तो था. ये आपके कामकाज का हिस्सा है आपके संवैधानिक दायित्व बोध का हिस्सा, लेकिन जज होने के नाते हम अपनी भावनाओं को कंट्रोल करने की ट्रेनिंग भी लिए हुए होते हैं. यह सालों साल के अनुभव से आता है.
सुप्रीम कोर्ट के 50वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि आपको वही करना होता है जो सही है. इससे फर्क नहीं पड़ता है कि आपके सामने कौन है, इससे किस पर असर पड़ रहा है और आप किसके फैसले को पलट रहे हैं.
बता दें कि महिला अधिकारों पर भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की राय अपने पिता से अलग थी.