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जस्टिस नरीमन ने क्यों कहा- देशद्रोह कानून को रद्द करने का समय आ गया है?

जस्टिस नरीमन ने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी. अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे. अपनी शक्ति और अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ हिस्से को खत्म करे.

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जस्टिस आरएफ नरीमन (फाइल फोटो)
जस्टिस आरएफ नरीमन (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने यूएपीए को बताया अंग्रेजों का कानून
  • कहा- देश में अभी भी मौजूद हैं कठोर औपनिवेशिक कानून

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा है कि मौजूदा समय में देशद्रोह का कानून प्रासंगिक नहीं है. इस कानून की ही नहीं बल्कि यूएपीए (UAPA) के कुछ हिस्सों को भी हटा देना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने देशद्रोह कानून को रद्द करने की वकालत की है.

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जस्टिस नरीमन ने एक कार्यक्रम में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को देशद्रोह कानून को रद्द कर देना चाहिए. गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर UAPA कानून के कुछ हिस्सों को भी रद्द करने की पहल की जानी चाहिए. विश्वनाथ पसायत स्मृति समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करूंगा कि वह उसके सामने लंबित देशद्रोह कानून के मामलों को वापस केंद्र के पास न भेजे.

जस्टिस नरीमन ने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी. अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे. अपनी शक्ति और अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ हिस्से को खत्म करे ताकि देश के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस ले सकें. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि वैश्विक कानून सूचकांक में भारत की रैंक 142 है. इसकी वजह ये है कि यहां कठोर और औपनिवेशिक कानून अभी भी मौजूद हैं. उन्होंने फिलीपींस के दो पत्रकारों को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की भी चर्चा की.

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यूएपीए को बताया अंग्रेजों का कानून

जस्टिस नरीमन ने यूके और भारत में देशद्रोह कानून के इतिहास की भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को देशद्रोह के प्रावधान को खत्म करना चाहिए. उन्होंने कहा कि चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद ये औपनिवेशिक कानून, गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम आदि बनाए गए. UAPA अंग्रेजों का कानून  है क्योंकि इसमें कोई अग्रिम जमानत नहीं है और न्यूनतम पांच साल की कैद का प्रावधान है.


 

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