दस साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद केरल हाईकोर्ट के न्यायिक अधिकारी सी जयचंद्रन को सिनियारिटी का तमगा मिल गया है. जज साहब को भी इंसाफ पाने के लिए दस साल का इंतजार करना पड़ा. सब्र, संघर्ष और साहस का फल मीठा निकला.
पहले तो जयचंद्रन साहब की लड़ाई शुरू हुई जिला अदालत में अपनी डायरेक्ट नियुक्ति को लेकर. वहां प्रतियोगिता पास करने के साथ जो नंबर मिले उसमें अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ उन्होंने अदालती लड़ाई लड़ी. अंकों में सुधार करा कर आए शख्स को जयचंद्रन का सीनियर जज बना देने के खिलाफ ये लड़ाई थी क्योंकि जयचंद्रन सीधी भर्ती से आए थे. ऐसे में अंकों का जुगाड़ कैसे भरी पड़ जाता?
जयचंद्रन की दलील थी कि अखिल भारतीय स्तर पर उनके न्यायिक सेवा ज्वाइन करने के दिन से ही उनकी सिनियरिटी तय हो ना कि कानूनी लड़ाई जीतकर दूसरे जिले में जिला जज बनाए जाने के दिन से क्योंकि उन जिलों में जिला जज के पद को सीधी भर्ती के जरिए ही भरा जाना था.
जयचंद्रन ने मार्च 2020 में अपनी कानूनी लड़ाई जीत ली और इसी के जरिए सिनियरिटी बहाल हुई. नतीजा यह हुआ कि इसी सिनियारिटी के आधार पर उन्हें केरल हाईकोर्ट का जज बनाए जाने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने की. केंद्र सरकार की मुहर लगते ही योर ऑनर का संबोधन माई लॉर्ड या योर लॉर्डशिप में बदल जाएगा. जज साहब जस्टिस यानी न्यायमूर्ति हो जाएंगे.
केरल में केस जीतकर सीनियर हो जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट तक ये मामला पहुंचा. जिन जज साहब का नाम जयचंद्रन से नीचे था उन्होंने सुप्रीम कोर्ट तक अर्जी दाखिल कर अनुभव के आधार पर वरीयता की दलील देते हुए खुद को भी हाईकोर्ट का जज नियुक्त किए जाने की दुहाई दी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलील और अर्जी खारिज कर दी.