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'स्टिंग ऑपरेशन जनहित में हो तो वह वैध', पत्रकारों की याचिका पर केरल हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी

अदालत ने कहा कि ऐसा कोई एक समान नियम नहीं हो सकता कि कानून लागू करने वाली एजेंसी और मीडिया द्वारा किए गए सभी 'स्टिंग ऑपरेशन' को वैध माना जाए. प्रत्येक मामले में तथ्यों के आधार पर यह तय किया जाना चाहिए. यदि प्रेस द्वारा स्टिंग ऑपरेशन किसी दुर्भावनापूर्ण इरादे से या किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाकर उसे अपमानित करने के लिए किया जाता है, तो ऐसे स्टिंग ऑपरेशन और ऐसे 'स्टिंग ऑपरेशन' पर आधारित रिपोर्टिंग के लिए मीडियाकर्मी को कोई कानूनी समर्थन नहीं मिलेगा.

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केरल हाईकोर्ट ने दो पत्रकारों को बड़ी राहत दी है (फाइल फोटो)
केरल हाईकोर्ट ने दो पत्रकारों को बड़ी राहत दी है (फाइल फोटो)

केरल हाईकोर्ट ने मीडिया द्वारा किए जाने वाले स्टिंग ऑपरेशन को लेकर अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा कि अगर मीडिया द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन जनहित में हैं तो वे वैध हैं. दरअसल, केरल हाईकोर्ट सनसनीखेज ‘सोलर घोटाला मामले’ के संबंध में स्टिंग ऑपरेशन पर टीवी चैनल के दो पत्रकारों की याचिका पर विचार कर रहा था. वे 2013 में अनुमति लेकर पठानमथिट्टा की जिला जेल में एक विचाराधीन कैदी से मिलने गए थे. इस दौरान उन्होंने उसका बयान दर्ज करने का प्रयास किया.

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इसके बाद याचिकाकर्ताओं के खिलाफ केरल कारागार एवं सुधार सेवा (प्रबंधन) अधिनियम 2010 (संक्षेप में 'अधिनियम 2010') की धारा 86 और 87 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज की गई थी. उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की गई थी. न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन की एकल पीठ ने कहा, "चौथा स्तंभ भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और गलत कामों की जांच और उन्हें उजागर करके सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहरा रहा है. चौथा स्तंभ (मीडिया) जनता को सटीक और निष्पक्ष जानकारी देकर सूचित करता है, जिससे वे सूचित निर्णय लेने में सक्षम होते हैं. लेकिन उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, उनकी ओर से कुछ ऐसी गतिविधियां हो सकती हैं जिनकी सामान्य रूप से कानून के अनुसार अनुमति नहीं है. चौथे स्तंभ द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ऐसी ही एक विधि है ‘स्टिंग ऑपरेशन’."

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हालांकि, अदालत ने कहा कि ऐसा कोई एक समान नियम नहीं हो सकता कि कानून लागू करने वाली एजेंसी और मीडिया द्वारा किए गए सभी 'स्टिंग ऑपरेशन' को वैध माना जाए. प्रत्येक मामले में तथ्यों के आधार पर यह तय किया जाना चाहिए. यदि प्रेस द्वारा स्टिंग ऑपरेशन किसी दुर्भावनापूर्ण इरादे से या किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाकर उसे अपमानित करने के लिए किया जाता है, तो ऐसे स्टिंग ऑपरेशन और ऐसे 'स्टिंग ऑपरेशन' पर आधारित रिपोर्टिंग के लिए मीडियाकर्मी को कोई कानूनी समर्थन नहीं मिलेगा. लेकिन अगर 'स्टिंग ऑपरेशन' का उद्देश्य सच्चाई का पता लगाना और नागरिकों तक उसे पहुंचाना है, तो बिना किसी दुर्भावनापूर्ण इरादे के, प्रेस को ऐसे 'स्टिंग ऑपरेशन' के लिए अभियोजन से छूट दी जाती है.

अदालत ने कार्रवाई को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि याचिकाकर्ताओं ने पूर्व अनुमति और अन्य कारकों के साथ जेल में प्रवेश किया. कोर्ट ने कहा कि वे एक कैदी का बयान लेने की कोशिश कर रहे थे जो उस समय एक बहुत ही सनसनीखेज मामले में शामिल था. उनके प्रयास को जेल अधिकारियों ने पकड़ लिया और उन्हें मोबाइल फोन का उपयोग करने से रोक दिया. इसलिए जेल अधिकारियों के हस्तक्षेप के कारण कोई रिकॉर्डिंग नहीं हो पाई. अदालत ने आदेश दिया कि उनका कार्य केवल समाचार प्राप्त करने के इरादे से था और कानून का उल्लंघन करने के लिए कोई जानबूझकर किया गया कार्य नहीं था.

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