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'CBI फिलहाल नहीं ले पाएगी मणिपुर हिंसा पीड़िताओं के बयान ', सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने वायरल वीडियो मामले में पीड़िताओं से सीबीआई की पूछताछ पर फिलहाल रोक लगा दी है. पीड़िताओं के वकील ने चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ के सामने ये मुद्दा उठाते हुए कहा कि मामला यहां लंबित है और वहां सीबीआई टीम जांच के लिए पहुंच गई है. पीड़ित महिलाओं को बार बार एक ही बयान देने को मजबूर किया जा रहा है.

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सुप्ररीम कोर्ट (File Phorto)
सुप्ररीम कोर्ट (File Phorto)

मणिपुर में सीबीआई जांच मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई टीम को पीड़िताओं के बयान लेने से फिलहाल अगले आदेश तक रोक दिया है. पीड़िताओं की वकील ने चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ के सामने ये मुद्दा उठाते हुए कहा कि मामला यहां लंबित है और वहां सीबीआई टीम जांच के लिए पहुंच गई है. पीड़ित महिलाओं को बार बार एक ही बयान देने को मजबूर किया जा रहा है.

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चीफ जस्टिस ने कहा कि हम दो बजे सुनवाई करेंगे. सीबीआई हमारे आदेश का इंतजार करे. मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह सीबीआई को मणिपुर हिंसा की जांच शुरू करने से फिलहाल रोके. वकील निज़ाम पाशा ने अदालत के सामने कहा कि सीबीआई पीड़ितों के पास पहुंच गई है और उनके बयान दर्ज करने भी शुरू कर दिये है. मामला यहां लंबित है और ये तय नहीं है कि जांच कौन सी एजेंसी करेगी. लिहाजा उन्हें रोका जाना चाहिए. क्योंकि आज दोपहर 2 बजे सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई तय है. और हमारी भी अर्जी यही कहती है कि हम नहीं चाहते कि इस मसले की सीबीआई जांच हो. इसके बाद सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को निर्देश दिया कि वह सीबीआई से जांच को आगे न बढ़ाने के लिए कहें. तुषार मेहता ने  सीजेआई से सहमति जताई.

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मणिपुर में कब भड़की हिंसा?

3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. 3 मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया. ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. मणिपुर हिंसा में अब तक 150 लोग मारे जा चुके हैं.

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?

मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है. राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नागा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है. मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं. पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.

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