मुंबई के एक सेशन्स कोर्ट ने एक ऐसे आरोपी को दस साल की सजा सुनाई है, जिसने ऐसी महिला के साथ बलात्कार किया था, जिसकी मानसिक स्थिति सही नहीं थी. ऐसी स्थिति में कोर्ट ने कहा है कि ऐसे में अगर सहमति होगी तब भी वह कानून की नजर में अमान्य है क्योंकि वह सहमति देने की मानसिक स्थिति में नहीं है.
दरअसल मामला ऐसे है कि एक पीड़ित महिला जो दो बच्चों की मां भी है, मिर्गी की बीमारी से परेशान थी. इसकी दवाई के लिए वह अक्सर अपने मायके रहती थी. जहां उसकी मामी के घर के पास ही आरोपी रहता था जो कि एक सफाईकर्मी भी है. आरोपी मोहन लाला पुरोबिया महिला की मामी के घर पर आता-जाता रहता था. और उसी बिल्डिंग में सफाई के काम के लिए आता था.
एक दिन आरोपी पुरोबिया उसे एक सार्वजनिक शौचालय में अपने साथ ले गया, जहां उसने पीड़ित से शादी करने का वायदा करते हुए उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. इसके बाद उसने पीड़ित को ये भी धमकी दी कि अगर उसने किसी को बताया तो वो उसे और उसके दोनों बच्चों को मार डालेगा.
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16 अगस्त, 2016 के दिन उसकी तबीयत सही नहीं थी, इसलिए पीड़ित महिला के घर वाले उसे एक अस्पताल ले गए. जहां डॉक्टरों ने बताया कि महिला गर्भवती है. इसके बाद महिला ने अपने घर वालों को पूरी बात बता दी. इसके बाद महिला का गर्भ गिरा दिया गया. DNA रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि हो गई कि भ्रूण का पिता वो सफाईकर्मी ही है.
आरोपी ने अदालत में अपने पक्ष में कहा कि उसने शारीरिक संबंध बनाने से पहले सहमति ली थी और महिला ने सार्वजनिक अपयश से बचने के लिए उसके खिलाफ मुकदमा किया है. लेकिन अदालत ने जब महिला का मेडिकल टेस्ट करवाया तो उसका IQ बेहद कम आया. डॉक्टरों ने उसकी मेंटल एज 5 साल 4 महीने जितनी बताई.
इसके बाद कोर्ट ने उसे रेप का आरोपी मान लिया है. कोर्ट ने दस साल की सजा सुनाते हुए कहा कि सहमति देना भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मसला है. अगर महिला से सहमति भी ली गई होगी तब भी इसके साक्ष्य नहीं हैं कि महिला ने उसी काम के लिए सहमति दी होगी. चूंकि उसकी मेंटल एज महज 64 महीने है इसलिए कानून की नजर में उसकी सहमति, सहमति नहीं है.