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वन नेशन, वन इलेक्शन में क्या हैं संवैधानिक चुनौतियां? जानें हर सवाल का जवाब

वन नेशन, वन इलेक्शन सुनने में जितना अच्छा लगता है. इसे लागू करने में उतनी ही चुनौतियां भी हैं. एक देश, एक चुनाव को लागू करने में बड़े स्तर पर संवैधानिक चुनौतियां भी आएंगी. सवाल यह भी है कि एक देश एक चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा तो स्थानीय मुद्दों का क्या होगा?

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

वन नेशन, वन इलेक्शन यानी एक देश, एक चुनाव के मुद्दे पर देशभर में एक बार फिर बहस छिड़ गई है. इसकी वजह मोदी सरकार सरकार का उस कमेटी का गठन करना है, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे. मोदी सरकार के इस कदम के बाद से ही एक बार फिर यह मुद्दा सुर्खियों में आ गया है. हालांकि, फिलहाल यह जानकारी नहीं मिली है कि इस कमेटी में कौन-कौन शामिल होगा. कुछ समय बाद इसका नोटीफ़िकेशन जारी किया जाएगा. मोदी सरकार ने यह फैसला 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के एक दिन बाद लिया है. फिलहाल सत्र बुलाने का एजेंडा भी गुप्त रखा गया है.

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वन नेशन, वन इलेक्शन सुनने में जितना अच्छा लगता है. इसे लागू करने में उतनी ही चुनौतियां भी हैं. एक देश, एक चुनाव को लागू करने में क्या संवैधानिक चुनौतियां आएंगी. इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ विकास सिंह ने आजतक को बताया कई जानकारियां दी हैं. उन्होंने कहा है कि इसके लिए अविश्वास प्रस्ताव के साथ विश्वास प्रस्ताव लाने की भी शर्त लागू कर देनी चाहिए।

कानून में करने होंगे कई संशोधन

विकास सिंह का कहना है कि एक देश, एक चुनाव को लागू करने से पहले अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करना होगा. इसमें कहा गया है कि सदन का कार्यकाल 5 साल का होगा या इस अवधि से पहले सदन को भंग करना होगा. विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के एक दल बदल कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा,'दलबदल की वजह से अयोग्य हुए विधायक या सांसद को उसी विधानसभा या लोकसभा में दोबारा चुनाव लड़कर जीत कर आने की इजाजत इस कानून में दी गई है.'

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बने विश्वास प्रस्ताव लाने का नियम 

उन्होंने सवाल उठाया कि विधान सभा समय से पहले भंग हो या किसी संवैधानिक संकट के कारण सरकार चलना नामुमकिन हो तो राष्ट्रपति शासन लगाने का विधान है. लेकिन संसद में ऐसी ही परिस्थिति हो तो केंद्र में राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए उसका भी विकल्प जरूरी है. इसलिए विपक्ष जब भी अविश्वास प्रस्ताव लाए तो उसे पूरक विश्वास प्रस्ताव भी लाना हो, ताकि सरकार चलती रहे.

स्थानीय मुद्दों पर संकट के बादल

कई राजनीतिक दलों का यह भी कहना है कि एक देश एक चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़ा जाएगा तो स्थानीय मुद्दों का क्या होगा? वो उपेक्षित रह जाएंगे. ऐसे में नुकसान आम नागरिकों का ही होगा, क्योंकि फिर उनकी स्थानीय समस्याओं का समाधान कैसे होगा? छोटे राजनीतिक दल जो स्थानीय मुद्दों पर राजनीति करते हैं उनका भविष्य खराब हो जाएगा. 

बड़े स्तर पर करने होंगे इंतजाम

तीसरा मुद्दा और चुनौती ढांचागत है. ईवीएम और VVPAT मशीनों का बड़ी संख्या में उत्पादन करना होगा. क्योंकि अब तक तो एक चुनाव के बाद ईवीएम का इस्तेमाल महीनों बाद होने वाले दूसरे राज्य के विधान सभा के चुनाव में होता रहा है. लेकिन एक साथ चुनाव के लिए डबल मशीनों को जरूरत होगी. यानी इस विचार पर अमल इतना आसान नहीं होगा, जितना इस बारे में बात करने में होता है.

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