सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने देशद्रोह कानून को रद्द करने की वकालत की है. एक कार्यक्रम में जस्टिस नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को देशद्रोह कानून को रद्द कर देना चाहिए. इतना ही नहीं, गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर बने UAPA कानून के भी कुछ हिस्से को रद्द करने की पहल होनी चाहिए.
विश्वनाथ पसायत स्मृति समिति द्वारा आयोजित समारोह में बोलते हुए जस्टिस आरएफ नरीमन ने अपने भाषण में कहा, "मैं सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करूंगा कि वह उसके सामने लंबित देशद्रोह कानून के मामलों को वापस केंद्र के पास न भेजे."
जस्टिस नरीमन ने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी. अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे. अपनी शक्ति और अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ हिस्से को खत्म करे. ताकि देश के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस ले सकें.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि वैश्विक कानून सूचकांक में भारत की रैंक 142 है. इसकी वजह ये है कि यहां कठोर और औपनिवेशिक कानून अभी भी मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि फिलीपींस के दो पत्रकारों को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया. वहां भारत का रैंक 142 था..क्यों? यह भारत के औपनिवेशिक कानूनों के कारण है.
विश्वनाथ पसायत मेमोरियल पैनल चर्चा में जस्टिस आरएफ नरीमन ने ब्रिटेन और भारत में देशद्रोह कानून के इतिहास के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को देशद्रोह के प्रावधानों को खत्म करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत के चीन और पाकिस्तान से युद्ध हुए थे उसके बाद ये औपनिवेशिक कानून, गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम बनाया गया. जस्टिस नरीमन ने कहा कि "Imminent lawless action" वर्तमान में इस्तेमाल किया जाने वाला एक मानक है जिसे यूनाइटेड स्टेट्स सुप्रीम कोर्ट द्वारा ब्रैंडेनबर्ग बनाम ओहियो (1969) में स्थापित किया गया था.
जस्टिस नरीमन ने कहा कि UAPA अंग्रेजों का कानून है, क्योंकि इसमें कोई अग्रिम जमानत नहीं है और इसमें न्यूनतम 5 साल की कैद है. यह कानून अभी भी समीक्षा के दायरे में नहीं है. देशद्रोह कानून के साथ इस पर भी विचार किया जाना चाहिए.
जस्टिस नरीमन ने कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में धारा 124ए कैसे बची हुई है? इस पर विचार किया जाना चाहिए.