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भारत में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाए या नहीं? अब इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच करेगी.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने इस मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया है. इस मामले पर 18 अप्रैल से सुनवाई शुरू होगी. इस मामले की लाइव स्ट्रीमिंग भी होगी.
हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब दो समलैंगिकों के बीच शादी होगी तो बच्चे को गोद लेने पर सवाल उठेगा. संसद को बच्चे की मनोस्थिति पर आकलन करना होगा. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जरूरी नहीं कि एक समलैंगिक जोड़े की गोद ली हुई संतान भी समलैंगिक ही हो.'
इस पर याचितकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं एडवोकेट अरुंधति काटजू ने आपत्ति जताई और कहा कि उनके सामने कई याचिकाकर्ता हैं, जिन्होंने बच्चे को गोद लिया है.
समलैंगिक विवाह का ये पूरा मामला कैसे उठा? केंद्र इन्हें मान्यता क्यों नहीं देना चाहती? याचिकार्ताओं की मांग क्या है? जानिए...
क्या है पूरा मामला?
- दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं.
- पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी.
- इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी.
- सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर में जिन याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था, उसमें ये निर्देश देने की मांग की गई थी कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) लोगों को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए.
- इसी तरह एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए.
- इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था. इस पर सुनवाई के लिए 13 मार्च की तारीख तय की थी. अब इन याचिकाओं पर पांच जजों की संवैधानिक बेंच 18 अप्रैल से सुनवाई करेगी.
केंद्र को क्यों है आपत्ति?
- समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल 15 याचिकाएं हैं. केंद्र सरकार ने इन सभी का विरोध किया है और इन्हें खारिज करने की मांग की है. केंद्र ने 56 पेज के हलफनामे में समलैंगिक विवाह का विरोध किया है.
- केंद्र ने कहा, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें.
- केंद्र ने समलैंगिक विवाह को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है. केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती.
- कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा?
- कोर्ट में केंद्र ने कहा, समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी. इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं.
अपराध नहीं हैं समलैंगिक संबंध
- 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है. उस समय कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकों के वही मूल अधिकार हैं, जो किसी सामान्य नागरिक के हैं. सबको सम्मान से जीने का अधिकार हैं.
- सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को निरस्त कर दिया था. जिसके बाद आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बने संबंधों को अपराध नहीं माना जाता.
- फैसला सुनाते समय तब के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. समलैंगिक लोगों को सम्मान से जीने का अधिकार है. समलैंगिकता अपराध नहीं है और इसे लेकर लोगों को सोच बदलनी चाहिए.