देश की सर्वोच्च अदालत 7 साल पहले सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए (repealed Section 66A of the Information Technology Act, 2000) को निरस्त कर चुकी है. इसके बाद भी अभी तक इस कानून के तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं.
इस मसले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई. आईटी एक्ट की धारा के तहत मुकदमे दर्ज करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने इस धारा के तहत दर्ज सभी मुकदमों पर लिए गए एक्शन रद्द करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों से पूछा कि आखिर किस आधार पर मुकदमे दर्ज किए?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेशों में सभी पुलिस महानिदेशकों, गृह सचिवों और सक्षम अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे पुलिस बल को 66ए के उल्लंघन के संबंध में कोई शिकायत दर्ज न करने का निर्देश दें.
कोर्ट ने कहा कि कोई भी पुलिसकर्मी किसी भी अपराध में 66ए के तहत कार्रवाई नहीं कर सकता, डीजीपी को ये बात सुनिश्चित करना चाहिए. इसके अलावा यदि किसी सरकारी दस्तावेज में 66A का उल्लेख है तो यह यह बताना होगा कि 66A हटा दिया गया है.
बता दें कि गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को खत्म करने के लिए 24 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश के अनुपालन के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाने के लिए भी कहा था.
इससे पहले गृह मंत्रालय ने राज्यों से अपील की थी कि अगर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कोई मामला दर्ज किया गया है, तो ऐसे मामलों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह जानकर हैरानी हुई कि राज्य ऑनलाइन संचार को दंडित करने के लिए आईटी अधिनियम की धारा 66 ए का उपयोग कर रहे थे. राज्यों को गृह मंत्रालय की ओर से भेजी गई एडवाइजरी में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च, 2015 को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में अपने फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए को हटा दिया, आदेश की तिथि से प्रभावी है और इसलिए इसके तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है.