देश में लंबे समय से CrPC की धारा 64 में बदलाव की मांग हो रही थी. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई. कहा जाता है कि इसकी वजह से महिलाओं के साथ भेदभाव और आरोपियों को समन करने में देरी होती है. इस वजह से न्याय मिलने में भी देरी होती है. इसी आधार पर CrPC की धारा 64 को चुनौती देने वाली याचिका आज सुनवाई हुई.
सुनवाई के बाद CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटिस जारी करते हुए अटॉर्नी जनरल (AG) को 4 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. मामले पर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि CrPC की धारा 64 महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण है. क्योंकि इसकी वजह से न्याय प्रक्रिया में देरी भी होती है.
CJI ने वकील से पूछा सवाल
हालांकि CJI ने नोटिस जारी करते हुए यह सवाल भी पूछा कि आप एक वकील हैं और आप इससे किस तरफ और तरह से प्रभावित हैं? कम से कम इस तरह के मामले से जुड़े किसी महिला को कोर्ट आना चाहिए.
धारा 64 को क्यों दी गई चुनौती?
दरअसल Crpc की धारा 64 को चुनौती दी गई है. इस धारा के मुताबिक अदालत का समन आरोपी की ओर से उसके घर की महिला स्वीकार नहीं कर सकती. उसी व्यक्ति को स्वीकार करना होता है. याचिका में इसे महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण बताया गया है. इसी की वजह से यह धारा न्याय मिलने में देरी का भी कारण है. इस पर सुप्रीम कोर्ट विचार करे.
क्या होती है सीआरपीसी?
जानकारी के लिए बता दें कि सीआरपीसी (CrPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी के संबंध में होती है. सीआरपीसी में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.
1974 में लागू हुई थी CrPC
गौरतलब है कि सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन भी किए गए हैं.