राजद्रोह (Sediton Law) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने इतिहास बनाया है, क्योंकि सत्तर साल के इतिहास में अब तक ऐसा नहीं हुआ कि सुनवाई के दौरान किसी कानून को कोर्ट ने अपने एक आदेश से बेहोश कर दिया हो. यानी राजद्रोह के अपराध और सजा को लेकर एक वैक्यूम, खालीपन और रिक्तता बन गई है.
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के साथ ही ब्रिटिश काल से गर्वीला सिर उठाए खड़ी राजद्रोह वाली धारा यानी आईपीसी की धारा 124ए एकदम से कोमा में चली गई. अब तक कोर्ट के फैसलों से ये स्थिति आती थी, लेकिन इस बार सिर्फ आदेश ही काफी था.
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की विशेष पीठ ने साफ कह दिया कि जब तक सरकार इस धारा पर अपना पुनरीक्षण सम्यक रूप से पूरा कर किसी नतीजे पर पहुंचकर कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर देती तब तक राजद्रोह को निरूपित करने वाली ये धारा ठंडे बस्ते में ही रहेगी.
राजद्रोह कानून पर क्या कह रहे जानकार
सुप्रीम कोर्ट के इस तेवर को देखते हुए अब कानून के जानकार तो ये भी मान रहे हैं कि इसकी चरम परिणति इस धारा के पूरी तरह से रद्द होने के रूप में हो सकती है. बिलकुल वैसे ही जैसे सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में मिट्ठू बनाम पंजाब सरकार के मामले में दिए फैसले के जरिए आईपीसी की धारा 303 के तहत मृत्युदंड की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया था. तब कोर्ट ने खून के बदले खून और जान के बदले जान लेने के उपनिवेशिक कानून को भारतीय सुधारात्मक विधि के खिलाफ बताया था.
क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश सरकार के लिए झटका?
सुप्रीम कोर्ट में वकील फुजैल खान के मुताबिक, सरकार के यू-टर्न लेकर पुनर्विचार की दुहाई देने के बावजूद कोर्ट का सख्त रुख अपने आप में बहुत कुछ कहता है. ये सरकार के लिए झटका है. आईपीसी की धारा 124-a की अब उतनी अहमियत भी नहीं रह गई है. अब देश में UAPA जैसे कानून और एनआईए जैसी स्वतंत्र एजेंसियां हैं. संभव है कि कोर्ट जुलाई में इन्हीं के हवाले से इस धारा को सदा के लिए दफन ही करने का आदेश दे दे. बता दें कि अब जुलाई के तीसरे हफ्ते में इस मामले की सुनवाई होगी.
फुजैल खान का कहना है कि ये ऐतिहासिक क्षण है जब सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने कह दिया कि सरकार अपने उपाय करे लेकिन जब तक पुख्ता कानूनी प्रावधान के मसौदे पर उनकी मुहर न लग जाए, तब तक124a के तहत ना कोई मुकदमा दर्ज होगा और न ही पहले से इस धारा में दर्ज मुकदमे के आरोपी को जेल में बंद रखा जा सकेगा. इस धारा के तहत विचाराधीन कैदी अपनी जमानत की अर्जी समुचित कोर्ट में लगा सकते हैं. यानी उनको अपराध की गंभीरता के मानदंडों पर जमानत पर रिहा किया जा सकता है.
वहीं सुप्रीम कोर्ट में वकील अर्धेन्दुमौलि कुमार प्रसाद का कहना है कि ये तो केंद्र सरकार की उदारता और कानून के प्रति सकारात्मक सोच है. सरकार ने अपनी ओर से कोर्ट में पुनर्विचार की पेशकश की. उपनिवेश काल के कानूनी प्रावधान को आज के मुताबिक ढालने के लिए इस पर पुनर्विचार की बात कही. इसका असर होगा. सरकार सभी पहलुओं से इस पर विचार मंथन कर व्यापक और असरदार प्रावधान लेकर आएगी.
राष्ट्र के खिलाफ बयान देने, देश तोड़ने के काम करने जैसे जघन्य अपराधों के लिए समुचित कानून जरूरी है जो सटीक कार्रवाई करे. UAPA और ऐसे ही कई कानूनों का इसके साथ घालमेल कतई उचित नहीं है, जितना घालमेल होगा सजा दिलाना उतना ही पेचीदा होता जाएगा. लिहाजा सटीक कानून जरूरी है जिसकी ओर सरकार बढ़ रही है. इसे मौजूदा दौर के मुताबिक बिलकुल सकारात्मक नजरिए से लिया जाना चाहिए.