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महाराष्ट्र: 'स्पीकर के अधिकार को लेकर सदन में चर्चा क्यों नहीं होती', सुप्रीम कोर्ट का सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि राजनीतिक दलों और सांसदों ने 10वीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका को लेकर उठने वाली समस्याओं पर अब तक ध्यान क्यों नहीं दिया? जस्टिस नरसिम्हा ने भी सवाल पूछा कि सांसदों ने इस मामले को संसद में कितनी बार उठाया.

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स्पीकर की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट में बहस
स्पीकर की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट में बहस

सदन में स्पीकर की भूमिका अहम रहती है, लेकिन वहीं भूमिका कई बार विवादों में भी आ जाती है. महाराष्ट्र की राजनीति में जब से सत्ता परिवर्तन हुआ है, स्पीकर की भूमिका को लेकर कई सवाल उठ गए हैं. 10वीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका पर सबसे ज्यादा विवाद देखने को मिल रहा है. अब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है. उद्धव ठाकरे की तरफ से कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश की हैं. कोर्ट ने भी एक अहम टिप्पणी से नई बहस छेड़ दी है.

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कोर्ट का उद्धव गुट से सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि राजनीतिक दलों और सांसदों ने 10वीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका को लेकर उठने वाली समस्याओं पर अब तक ध्यान क्यों नहीं दिया? जस्टिस नरसिम्हा ने भी सवाल पूछा कि सांसदों ने इस मामले को संसद में कितनी बार उठाया कि स्पीकर के अधिकार क्षेत्र के लिए तय नियमों में सुधारात्मक बदलाव किया जाए. उन्होंने कहा यह संसद का काम है तो आखिर संसद में ही क्यों नहीं किया? यह अदालत में तय किया जाने वाला मुद्दा नहीं है. इसी मुद्दे पर जस्टिस हिमा कोहली ने भी कहा कि अगर एक या दो स्पीकर के द्वारा नियम का पालन नहीं किया गया तो क्या कोर्ट को दसवीं अनुसूची के खिलाफ जाना चाहिए?

उद्धव गुट ने क्या दलील दी?

सिब्बल ने जवाब में कहा कि सत्ता में जो पार्टी रहती है वह इसे कभी नहीं बदलना चाहेगी. क्योकि सभी स्पीकर के कार्यालय का उपयोग अपने लाभ के लिए करना चाहते हैं. हम निर्वाचन आयोग के पास भी गए थे. वहां हमने कहा कि अयोग्यता पर विचार करने से पहले इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करें. निर्वाचन आयोग ने कहा कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट से कोई रोक नहीं लगी है. इसलिए हम मामले का फैसला करेंगे. सिब्बल ने कहा हमने निर्वाचन आयोग से पूछा भी था कि मान लीजिए आप उन्हें चुनाव चिह्न देते हैं और फिर कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आता है क्या हमें चुनाव चिन्ह वापस मिलेगा?  

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सिब्बल ने जोर देकर कहा कि यह एक राजनीतिक लड़ाई है. इसमें कोई एक जीतता है और दूसरा हारता है. लेकिन निर्वाचन आयोग जैसी संस्थाओं में लोगों का विश्वास बनाए रखा जाना चाहिए. सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि निर्वाचन आयोग किसी भी पक्ष को सुने बिना और हमारे द्वारा दिए गए जवाब के महज कुछ घंटे बाद ही 8 अक्टूबर को चुनाव निशान तीर-धनुष को फ्रीज कर दिया. जबकि चुनाव निशान अधिनियम के तहत ऐसी कार्यवाही के लिए समुचित सुनवाई जरूरी है.

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