सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल की महिला को अबॉर्शन की इजाजत दे दी है. महिला 24 हफ्ते की गर्भवती है. इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला के अबॉर्शन कराने की अर्जी को खारिज कर दिया था. बाद में उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला अविवाहित है, इसलिए उसे अबॉर्शन कराने से नहीं रोका जा सकता.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने एम्स डायरेक्टर को दो डॉक्टरों का पैनल बनाने और अबॉर्शन से जुड़ी रिपोर्ट एक हफ्ते में दाखिल करने का निर्देश भी दिया है.
इससे पहले 16 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को अबॉर्शन करवाने की इजाजत नहीं दी थी. कोर्ट ने कहा था कि महिला सहमति से गर्भवती हुई है और गर्भ 20 हफ्ते से ज्यादा का हो गया है, लिहाजा कानून के तहत उसे अबॉर्शन कराने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
25 साल की महिला ने हाईकोर्ट में अर्जी दी थी कि वो अपने पार्टनर के साथ सहमति से रह रही थी, लेकिन अब उसने उससे शादी करने से मना कर दिया है. महिला ने कहा था कि वो बिना शादी किए बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती, क्योंकि उसे न सिर्फ मानसिक बल्कि सामाजिक कलंक का दबाव भी झेलना पड़ेगा. साथ ही साथ वो अभी बच्चे को जन्म देने के लिए मानसिक रूप से भी तैयार नहीं है.
महिला की याचिका पर हाईकोर्ट ने कहा था कि चूंकि महिला अविवाहित है और अपनी सहमति से गर्भवती हुई है, इसलिए वो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स 2003 के तहत अबॉर्शन नहीं करवा सकती. हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि अबॉर्शन की अनुमति देना बच्चे की हत्या करने के बराबर होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाजत
हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने गलत दृष्टिकोण अपनाया था. चूंकि महिला अविवाहित है, इसलिए उसे अबॉर्शन कराने से नहीं रोका जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में संशोधन हुआ था, जिसमें 'पति' की जगह 'पार्टनर' शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ये इसलिए हुआ था ताकि 'अविवाहित महिलाओं' को भी इसके दायरे में लाया जा सके.
तो क्या भारत में अबॉर्शन कराने की छूट है?
भारत में अबॉर्शन यानी गर्भपात को 'कानूनी मान्यता' है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इसकी छूट मिल गई है. भारत में अबॉर्शन को लेकर 'मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट' है, जो 1971 से लागू है. इसमें 2021 में संशोधन हुआ था.
भारत में पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की मंजूरी थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन के बाद ये समयसीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई. इतना ही नहीं, कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की मंजूरी ली जा सकती है. भारत में अबॉर्शन को तीन कैटेगरी में बांटा गया है-
1. प्रेग्नेंसी के 0 से 20 हफ्ते तक
- अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है या फिर कांट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो गया हो और महिला न चाहते हुए भी गर्भवती हो जाए तो वो अबॉर्शन करवा सकती है. इसके लिए एक रजिस्टर्ड डॉक्टर का होना जरूरी है.
2. प्रेग्नेंसी के 20 से 24 हफ्ते तक
- अगर मां या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह का खतरा है, तो महिला अबॉर्शन करवा सकती है. हालांकि, ऐसे मामलों में दो डॉक्टरों का होना जरूरी है.
3. प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते बाद
- अगर महिला यौन उत्पीड़न या रेप का शिकार हुई हो और उस वजह से प्रेग्नेंट हुई हो तो 24 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है. अगर महिला विकलांग है तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.
- इसके अलावा बच्चे के जिंदा रहने के चांस कम हैं या मां की जान को खतरा हो और प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का मेरिटल स्टेटस बदल जाए यानी उसका तलाक हो जाए या फिर विधवा हो जाए, तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.
- अगर प्रेग्नेंसी से गर्भवती की जान को खतरा है तो किसी भी स्टेज पर एक डॉक्टर की सलाह पर अबॉर्शन किया जा सकता है. लेकिन अबॉर्शन तभी होगा, जब महिला की लिखित अनुमति होगी. अगर कोई नाबालिग है या मानसिक रूप से बीमार है तो ऐसी स्थिति में माता-पिता या गार्जियन की अनुमति जरूरी होगी.
- 24 हफ्ते बाद अबॉर्शन पर फैसला मेडिकल बोर्ड लेता है. कानून के तहत, हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को अपने यहां मेडिकल बोर्ड का गठन करना जरूरी है. इस बोर्ड में स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ, सोनोलॉजिस्ट या रेडियोलॉजिस्ट होते हैं. ये बोर्ड गर्भवती महिला की जांच करते हैं और तभी अबॉर्शन की अनुमति देते हैं.
लिंग के आधार पर नहीं करा सकते अबॉर्शन
भारत में अबॉर्शन को लेकर कानून जरूर है, लेकिन लिंग की जांच के बाद ऐसा कराना कानूनी अपराध है और ऐसा करने पर सजा होती है.
भारत में क्या है अबॉर्शन की स्थिति
भारत में अबॉर्शन को मान्यता देने का कानून 50 साल से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन, अभी भी इस कानून को लेकर इतनी जागरूकता नहीं है. केंद्र सरकार के एक दस्तावेज के मुताबिक, भारत में हर साल जितनी मांओं की मौत होती है, उनमें से 8% मौतें असुरक्षित गर्भपात के कारण होती है. इस दस्तावेज का कहना है कि भारत में हर साल असुरक्षित गर्भपात के कारण 12 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है.