गुजरात में साल 2002 के दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी थी. नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी की इस रिपोर्ट को गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में दंगाई भीड़ की हिंसा का शिकार बने तत्कालीन कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने जाकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी. सर्वोच्च न्यायालय ने जाकिया जाफरी की याचिका खारिज करने के साथ ही अपने फैसले में कई अहम बातें भी कहीं. कोर्ट ने जाकिया जाफरी की याचिका को लेकर कहा कि ये कड़ाही को खौलाते रहने की कोशिश है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये गुप्त डिजाइन पर चलाई गई मुहिम थी.
कोर्ट ने कहा कि वास्तव में न्यायिक और जांच प्रक्रिया के ऐसे दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है. उनके खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई करने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जाकिया जाफरी की याचिका किसी दूसरे के निर्देशों से प्रेरित नजर आती है. कोर्ट ने कहा कि 514 पेज की याचिका के नाम पर जाकिया परोक्ष रूप से विचाराधीन मामलों में अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों पर भी सवाल उठा रही थीं.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, ये तो बस उन्हें ही पता है. वह स्पष्ट रूप से किसी और के इशारे पर ऐसा कर रही थीं. कोर्ट ने कहा कि जाकिया जाफरी के तर्क से एसआईटी के सदस्यों की सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को कम करके आंकने की कोशिश की गई. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी के सदस्य अनुभवी थे और उनके पास वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर जटिल अपराधों की जांच करने की क्षमता थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाकिया जाफरी के तर्क लचर और एसआईटी की जांच को कमजोर करने का प्रयास थे. साथ ही ये कोर्ट पर भी सवाल उठाने का प्रयास था. एसआईटी ने जांच के दौरान जुटाई गई सभी सामग्रियों पर विचार करने के बाद ही अपनी राय बनाई थी इसलिए एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट को बिना किसी फेरबदल के स्वीकार किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि मुख्यमंत्री की मीटिंग में शामिल होने के दावेदारों के बयान भी मामले में राजनीतिक रूप से सनसनी पैदा करने वाले थे. दरअसल संजीव भट्ट, हिरेन पंड्या और आरबी श्रीकुमार ने SIT के सामने बयान दिया था जो आगे चलकर निराधार साबित हुआ था. जांच में पता चला कि ये लोग तो लॉ एंड ऑर्डर की समीक्षा के लिए बुलाई गई उस मीटिंग में थे ही नहीं. इस झूठे दावे से इस धारणा को बल मिलता है कि ऊंचे स्तर पर साजिश रची गई और सुनियोजित ढंग से उस पर अमल किया गया. एसआईटी ने जब तथ्यों के आधार पर जांच की तो साजिश का ये ताना-बाना ताश के पत्तों के महल की तरह भरभरा कर गिर पड़ा.
गौरतलब है कि जाकिया जाफरी ने एसआईटी की रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दिए जाने के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. गुजरात हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट ने करीब सात महीने पहले दाखिल याचिका पर मैराथन सुनवाई के बाद इसे खारिज कर दिया है.