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लिव इन रिलेशनशिप रोकने के लिए सुरक्षा चाहते हैं? SC ने कपल के रजिस्ट्रेशन की मांग वाली याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट में लिव-इन पार्टनरशिप के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम और दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए याचिका दायर की गई थी. इसमें कोर्ट से केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी. सोमवार को मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- आप चाहते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले सभी लोगों का रजिस्ट्रेशन हो?

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सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को लेकर याचिका पर सुनवाई की. (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन को लेकर याचिका पर सुनवाई की. (फाइल फोटो)

लिव इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी और दिशा-निर्देश दिए जाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने याचिका को लेकर नाराजगी जताई और कहा- ऐसी याचिका हर्जाना लगा कर खारिज करनी चाहिए. कोर्ट से याचिकाकर्ता से पूछा- क्या आप उनकी (कपल) सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहते हैं या लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में आने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं? 

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बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में लिव-इन पार्टनरशिप के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम और दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए याचिका दायर की गई थी. इसमें कोर्ट से केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई थी. सोमवार को मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- आप चाहते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले सभी लोगों का रजिस्ट्रेशन हो? लोग कुछ भी लेकर आ जाते हैं. हमें इन याचिकाओं पर हर्जाना लगाना चाहिए. आप किसके साथ रजिस्ट्रेशन चाहते हैं?

'ये सब अर्नगल विचार हैं'

CJI ने आगे कहा- केंद्र का इससे क्या लेना-देना है? उन्होंने कहा- 'ये सब अनर्गल विचार हैं जिन्हें आप चाहते हैं कि अदालत लागू करे. कोर्ट ने मामले को खारिज करते हुए कहा कि ये सब अनर्गल विचार हैं जिन्हें आप चाहते हैं कि अदालत लागू करे. जबकि वकील का कहना था कि याचिकाकर्ता चाहता है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों की सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने के लिए उनके रिश्ते को रजिस्टर्ड किया जाए.

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लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का तर्क

वकील का कहना था कि यह उन जोड़ों और ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी होगा. याचिकाकर्ता ने अदालत से उन सभी लिव-इन पार्टनर्स को सामाजिक समानता और सुरक्षा प्रदान करने का आग्रह किया, जो अपना जीवन खुलकर जीना चाहते हैं. याचिका में कहा गया था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है, जहां अदालतों ने हमेशा अपने सभी नागरिकों को सुरक्षा देने का काम किया है.

अपराधों में हुई है वृद्धि

याचिका में तर्क दिया गया कि लिव-इन पार्टनरशिप को कवर करने के लिए कोई नियम और दिशा-निर्देश नहीं हैं, और वर्तमान परिदृश्य में लिव-इन पार्टनर द्वारा किए जाने वाले अपराधों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध भी शामिल हैं.

 

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