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DNA करवाने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- नियमित रूप से अदालतों को ऐसा करने से बचना चाहिए

कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि नियमित रूप से लोगों के DNA टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए. कोर्ट की नजरों में DNA टेस्ट कराना निजता के अधिकार के खिलाफ माना जा सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
स्टोरी हाइलाइट्स
  • DNA करवाने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
  • 'नियमित रूप से अदालतों को ऐसा करने से बचना चाहिए'

देश में कई ऐसे हाई प्रोफाइल मामले देखे गए हैं जहां पर कोर्ट द्वारा डीएनए टेस्ट करने के आदेश दे दिए जाते हैं. अब किसी भी केस में डीएनए का आदेश देने को काफी बड़ा और संवेदनशील माना जाता है. इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इस डीएनए टेस्ट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है.

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कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि नियमित रूप से लोगों के DNA टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए. कोर्ट की नजरों में  DNA टेस्ट कराना निजता के अधिकार के खिलाफ माना जा सकता है. ये भी कहा गया है कि DNA टेस्ट के लिए मजबूर करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा है कि  सिर्फ उन मामलों में ही ऐसा करना चाहिए जहां इस तरह के टेस्ट की अत्यधिक आवश्यकता हो.

जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि अदालतों के विवेक का इस्तेमाल पक्षों के हितों को संतुलित करने के बाद किया जाना चाहिए और ये तय किया जाना चाहिए कि मामले में न्याय करने के लिए DNA टेस्ट की आवश्यकता है या नहीं. पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में जहां रिश्ते को साबित करने या विवाद करने के लिए अन्य सबूत उपलब्ध हैं तो अदालत को आमतौर पर DNA टेस्ट  का आदेश देने से बचना चाहिए.

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अब जानकारी के लिए बता दें कि कोर्ट ने ये फैसला मालिकाना हक को लेकर एक मुकदमें में सुनाया है. दरअसल अपीलकर्ता ने दिवंगत दंपति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर दावा किया था. हालांकि, दंपति की तीन बेटियों ने इस बात से इनकार किया कि अपीलकर्ता मृतक का बेटा था और उसने संपत्ति पर विशेष दावा किया. इसी वजह से ये मामला सबसे पहले निचली अदालत के पास गया.

निचली अदालत के समक्ष बेटियों ने उसका DNA टेस्ट कराने की अर्जी दी थी. वहीं दूसरी तरफ अपीलार्थी ने इस आवेदन का विरोध करते हुए दावा किया कि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है. जोर देकर कहा गया उसने यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत पेश किए कि वह दिवंगत दंपति का बेटा है.

इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने DNA  टेस्ट का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया. लेकिन प्रतिवादियों ने हाईकोर्ट में आदेश के खिलाफ अपील कर दी. उस अपील के बाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए विपरीत दृष्टिकोण रखा कि अपीलकर्ता को प्रतिवादियों द्वारा सुझाए गए DNA टेस्ट से नहीं हिचकिचाना चाहिए और टेस्ट कराना चाहिए. इस वजह से पीड़ित याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ही डीएनए को लेकर ये बड़ा फैसला सुनाया है.   


 

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