आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान करने वाले संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई की. आर्थिक आधार पर आरक्षण के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम की संविधान पीठ ने कहा कि हम अभी भी एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां जाति से पहचान की जाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान संशोधन को चुनौती देने वाले लोग भी ये मानते हैं कि सामान्य वर्ग में भी गरीब लोग हैं. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 103वें संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की. 103वें संविधान संशोधन के जरिये आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान सरकार की ओर से किया गया था.
आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने दलीलें पेश कीं. निरंजन रेड्डी ने संविधान संशोधन को वैधानिक बताया और कहा कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को ईडब्ल्यूएस आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाना असंवैधानिक नहीं है.
निरंजन रेड्डी याचिकाकर्ता की उस दलील का जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि पिछड़े वर्गों को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत आरक्षण नहीं दिया जाना भेदभावपूर्ण है. आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी ने कहा कि ये वर्टिकल है. जिसके लिए पहले से ही आरक्षण का प्रावधान किया गया है, उसे बाहर रखा गया है.
उन्होंने ये भी कहा कि जो पहले से ही आरक्षण का लाभ प्राप्त कर रहे हैं, वे दोहरे आरक्षण के हकदार नहीं होंगे और उन्हें बाहर रखा जाना समानता के कानून का उल्लंघन नहीं है. इसके बाद बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे तर्क के आधार पर कल ये भी कहा जा सकता है कि जो गैर आरक्षित है वह किसी निर्दिष्ट श्रेणी से संबंधित नहीं है. वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी ने कहा कि पिछड़े वर्ग के लिए पहले से ही अनुच्छेद 15 (4) और 16 (4) के तहत प्रावधान किया गया है.