सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत के एक मामले में पटना हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए उसकी आलोचना की है. इस मामले में सहारा ग्रुप के चीफ सुब्रत राय पक्षकार नहीं थे. लेकिन इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सुब्रत रॉय को समन किया था.
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा है कि पटना हाईकोर्ट ने ये अंतरिम आदेश जारी करते हुए अपने न्यायिक अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत अपने आदेश में ये महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की है कि हाईकोर्ट ने सहारा ग्रुप पर निवेशकों की बकाया रकम के भुगतान के लिए याचिकाकर्ताओं की अग्रिम जमानत की अर्जी लंबित रखते हुए तीसरे पक्ष को पूछताछ के लिए समन कर लिया. ये कतई न्यायसंगत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अन्य लोगों की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान इस तरह का आदेश जारी करके उच्च न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा लांघी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुब्रत रॉय उस याचिका में आरोपी नहीं थे जो पटना हाई कोर्ट के सामने सुनवाई के लिए आया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गलत चलन है. जमानत के लिए दायर याचिका में उन्हीं मामलों की जांच करते हैं जो जमानत पर विचार के लिए प्रासंगिक हैं. जमानत के लिए यह कैसे प्रासंगिक हो सकता है? या तो आप जमानत खारिज करें या मंजूर करें. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले पटना हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें निवेशकों का पैसा वापस नहीं करने के मामले में बिहार के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया गया था कि वह सहारा प्रमुख को अदालत के समक्ष निजी तौर पर पेश करें.
पीठ ने बुधवार को भी सुनवाई के दौरान कहा था कि उच्च न्यायालय को अन्य मुकदमों में इस तरह के आदेश पारित करने चाहिए थे. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते वक्त ध्यान रखना चाहिए. सीआरपीसी की धारा 438 गिरफ्तारी की आशंका से बचने के लिए जमानत के निर्देश से संबंधित है.
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर ने कहा,अपने 22 साल के जजशिप के दौरान मैंने यह भी सीखा है कि अपने अधिकार क्षेत्र का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. जो आपके अधिकार क्षेत्र से बाहर है उसमे कभी अतिक्रमण नहीं करना चाहिए. पीठ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि उच्च न्यायालय ऐसा नहीं कर सकता. यह (अदालत) कर सकता है, लेकिन उचित प्रारूप और अधिकार क्षेत्र के तहत धारा 438 में नहीं.
बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय ने सुब्रत रॉय को अभियुक्त नहीं बनाया है. उन्हें योजना पेश करने को कहा है कि आखिरकार वह निवेशकों का पैसा कैसे लौटाएंगे. पीठ ने कहा हम केवल यह कह रहे हैं कि ऐसा (धारा) 438 के तहत नहीं किया जाना चाहिए था. न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत का अनुरोध किया था और अदालत को केवल इस मामले पर विचार करना चाहिए था कि क्या जमानत मंजूर करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यदि इस तरह का आदेश सत्र अदालत की ओर से दिया जाता तो उच्च न्यायालय उस सत्र न्यायाधीश को आड़े हाथों लेता. लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट ने अपने न्यायिक अधिकार क्षेत्र के दायरे का ध्यान नहीं रखा.