सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को "न्यायपालिका पर आक्षेप लगाने" के लिए फटकार लगाई. जस्टिस एएस ओका और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ यहां पश्चिम बंगाल में 2021 के चुनाव बाद हुई हिंसा के मामलों से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने मामलों को दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने की एजेंसी की अर्जी में उपयोग की गई भाषा और टिप्पणियों पर गंभीर आपत्ति जताई.
जस्टिस अभय एस ओका और पंकज मिथल की बेंच ने कहा कि एजेंसी पश्चिम बंगाल में पूरी न्यायपालिका पर आक्षेप नहीं लगा सकती. बेंच ने कहा, "आप पूरी न्यायपालिका पर आक्षेप कैसे लगा सकते हैं. आप ऐसा दिखा रहे हैं जैसे पूरे पश्चिम बंगाल में शत्रुतापूर्ण माहौल है."
अर्जी की भाषा पर जताई आपत्ति
पीठ ने अर्जी के कुछ हिस्सों को न्यायपालिका के खिलाफ "निंदनीय आक्षेप" के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया, जिसमें दावा किया गया है कि चुनाव के बाद हुई हिंसा मामले में "सभी मुकदमों" में "अदालत में प्रतिकूल माहौल का सामना करना पड़ रहा था और निचली अदालतों के जज "जमानत के आदेश दे रहे थे."
यह भी पढ़ें: बेंगलुरु के मुस्लिम बहुल इलाके को 'पाकिस्तान' बताने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के जज पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान
मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, "मिस्टर राजू (सीबीआई वकील), आप न्यायपालिका पर आक्षेप लगा रहे हैं! आप अपनी याचिका में ऐसे बयान कैसे दे सकते हैं? आप सभी न्यायालयों की इस तरह ब्रांडिंग कर रहे हैं जैसे कि पश्चिम बंगाल में सभी न्यायालयों में शत्रुतापूर्ण माहौल है!! आप कह रहे हैं कि सभी ट्रायल जज एकमुश्त जमानत आदेश दे रहे हैं."
सीबीआई ने अपने आवेदन में 45 से अधिक मामलों को पश्चिम बंगाल राज्य के बाहर ट्रांसफर करने की मांग की है. सीबीआई ने आरोप लगाया है कि हिंसा के कारण अपने घरों से भागने वाले पीड़ितों को सत्ताधारी अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस द्वारा घर नहीं लौटने दिया जा रहा है और कई गवाहों को गंभीर रूप से डराया-धमकाया जा रहा है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से याचिका पर सुनवाई से पहले उसमें संशोधन करने को कहा है.
सीबीआई की दलील
जस्टिस ओका ने कहा, "यदि हम मामलों को बंगाल से बाहर ट्रांसफर करते हैं तो हम प्रमाणित करेंगे कि सभी न्यायालयों में शत्रुतापूर्ण माहौल हैं." उन्होंने कहा कि आवेदन की भाषा "इस हलफनामे की पुष्टि करने वाले अधिकारी के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने का उपयुक्त मामला बनाती है."
हालांकि, सीबीआई की ओर से पेश हुए एएसजी एसवी राजू ने स्पष्ट किया कि एजेंसी का न्यायिक प्रणाली पर कोई आक्षेप लगाने का "कोई इरादा" नहीं था. एएसजी ने यह भी स्पष्ट किया कि "शत्रुतापूर्ण माहौल" का आरोप अदालत कक्ष के बाहर के माहौल और पीड़ितों और गवाहों को दी गई धमकियों के कारण लगाया था.
यह भी पढ़ें: झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की नियुक्ति में देरी, केंद्र के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची झारखंड सरकार
पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश हुए वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने भी सीबीआई के "पक्षपात" पर सवाल उठाया. वकील ने कहा, "एजेंसी को इस तरह से इस अदालत में क्यों आना पड़ रहा है?" एएसजी ने हालांकि तर्क दिया कि कई मामलों में पीड़ितों द्वारा मामलों को ट्रांसफर करने या यह दावा करने के लिए आवेदन भी दायर किए गए थे कि उन्हें धमकी का सामना करना पड़ रहा है.
अदालतों के खिलाफ लगाए गए आरोप निंदनीय- कोर्ट
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "पश्चिम बंगाल की सभी अदालतों के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाए गए हैं. बार-बार यह कहा जा रहा है कि राज्य की सभी अदालतों में शत्रुतापूर्ण माहौल व्याप्त है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों ने इस तरह से न्यायपालिका पर आक्षेप लगाया है."
पीठ ने कहा, "आपके अधिकारी किसी विशेष राज्य को पसंद नहीं कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप न्यायपालिका पर आक्षेप लगाएं." सीबीआई ने पीठ के समक्ष कहा कि वह अर्जी वापस ले लेगी और फिर एक नया आवेदन दाखिल करेगी. अदालत ने कहा, "आपको नया आवेदन दाखिल करने की स्वतंत्रता है, लेकिन आप न्यायाधीशों पर इस तरह के आरोप नहीं लगा सकते हैं"