निलंबित IPS गुरजिंदर पाल सिंह की जमानत के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है. गुरजिंदर पाल सिंह की जमानत पर रिहाई बरकरार रखते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार की दलील नामंजूर कर दी है.
याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि जमानत पर विचार करते समय आवेदक की स्थिति पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. संविधान के तहत एक सामान्य नागरिक और हाई रैंक ऑफिसर दोनों के हक समान होते हैं. इसलिए उसे उसके हक से वंचित नहीं किया जा सकता.
इसके अलावा कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए यह भी कहा कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में ज्यादातर सबूत दस्तावेजी ही होते हैं. ऐसे सबूतों से छेड़छाड़ करने का सवाल ही नहीं उठता. इस मामले में हाईकोर्ट ने कड़ी शर्तें भी लगाई हैं. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका में कोई मेरिट नहीं दिखती, इसलिए याचिका खारिज की जाती है.
दरअसल, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निलंबित IPS गुरजिंदर पाल सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में जमानत दे दी है. हालांकि, राज्य सरकार कोर्ट के इस फैसले से खुश नहीं थी.
सरकार ने यह कहते हुए जमानत रद्द करने की मांग की थी कि रिहा होने पर गुरजिंदर पाल गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं. पहले भी वह गवाहों को डराते और धमकाते थे. जिसकी वजह से पुलिस को उन गवाहों को सुरक्षा प्रदान करनी पड़ती थी.
क्या है गुरजिंदर पाल सिंह पर आरोप?
निलंबित आईपीएस अधिकारी गुरजिंदर पाल सिंह पर अवैध संपत्ति और राजद्रोह का केस चल रहा है. इस मामले में आर्थिक अपराध शाखा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने छापे मारते हुए 10 करोड़ रुपए से अधिक की आय से अधिक संपत्ति का पता लगाया था. उनके ठिकानों में मारे गए छापे के दौरान कंप्यूटर से मिली सामग्री के आधार पर उन पर सरकार के खिलाफ साजिश रचने का भी आरोप लगा है. इस सिलसिले में उन पर आईपीसी की धारा 124ए के तहत राजद्रोह का भी मुकदमा दर्ज किया गया था.